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________________ ३५० जैन-शिलालेख संग्रह वाळहोन्नूर-संस्कृत [विना कालनिर्देशका,-पर सभवत लगभग १०९० ई० का ] वाळहोन्नूरम, दूसरी चट्टानपर] श्रीमदादीभसिंहम्याजितसन-महा-सुनेः । अपशिष्येण मारेण कृता सेयं निगीधिका ॥ अगणितगुणगणनिलयो जैनागम-वाधि-वर्द्धन-शशाङ्कः । ..."त्यूर्जित-मण्डलि ....."र-गणे नत-गणाधीशः ॥ [वादीमासिह मजितसेन महामुनिका यह स्मारक उनके प्रधान शिष्य मारके द्वारा बनाया गया था । ये गणाधीन अगणित गुणोंके निलय (स्थान) थे, जैनागमरूपी समुद्रके पानीको बटानेके लिये चन्द्रमा थे।) [EC VI, Koppati, n° 3 ] कणवे-संस्कृत तथा कन्नड [वर्ष पाङ्गिरस, १०९३ ई० ? (ल. राइस)।] [कणवेमे, एक दूसरे समाधि-पाषाणपर] श्रीमत्परम-गम्भीर-स्याहादामोव-लाञ्चनम् । जीयात् त्रैलोक्यनायस्य शासन जिनशामनम् । श्री मूलसंघ कोण्डकुन्दान्वय-देशीयगण-पुस्तकगच्छ लोकियव्ये वसदिय प्र . "तळताळ बसदि बळ: 'रं बल्चुब लतान्त-सड्नि दि सञ्- 1 चठिसि पळञ्चि तू "रन नडिसि मेम्बगेयाद-दूसरं । कलयदे निन्द कबुनद कग्गिद विट्टिनमरक्केवेत्त क-। त्तळमेनिसित्तु पुत्तड मेय्य मल मलधारि-देवर ॥
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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