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________________ कणवेका लेख રૂર श्रवणबेलगोला-संस्कृत [बिना कालनिर्देशका] [देखो, जैन शिलालेखसंग्रह, प्रथम नाग] कणवे-मस्कृत तथा कन्नड़-मन्न [वर्ष शु. १०९० ई. १ (लू. राइस)।] [क्णवेमें, कल्लु-बस्तिमें एक समाधि-पापाणपर] श्रीमत्परमगमीरस्याबाटामोवलाञ्चनम् । जीयात् त्रैलोक्यनायव शासनं जिनशासनम् ।। साहस........ ......"महिम जिन-शत्रु वि...." 'होयसळा....." निळेयं सम्यक्त्व-चूडामणियने नेगळे मण्डारि-चन्टिमय्यन प्रियेयु जिनपाढान्वुजम मरियनुन दिवकेय्-दिदरेन्दोडे कृतार्थरिनार त्रिखावनियो । स्वस्ति समस्त-प्रशस्ति-महितं जिन-गन्धोटक पवित्रीकृतोत्तमाङ्गनु भव्य-रत्नाकरन सरखती-देवी-कर्ण-कुण्डलाभरगनप्प श्रीमन्महात्यवान होत्सव-देवन भण्डारि चन्दिमय्यन हेण्डति बोप्पच्वेयु शुक्ल-संवसरट पाय-मासन्धु सन्यासन गेनु समाधि सहित सोमवारदरडनेयजावदल स्वर्ग-प्रापितरावर [जिनशासनको प्रशंसा । प्रधान मत्री होरस-देवके वज्ञाञ्ची चन्दिमरयकी पत्नी बोप्पन्चने (उन्म मिनिको), मंन्यसन करते हुए, समाधिपूर्वक 'स्वर्ग' प्राप्त किया। [EC, TIII, Tirthahalli tl, n° 198.]
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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