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________________ २९२ जैन - शिलालेख संग्रह ख्यातियनेनं पेळ्बुदो | बूतुग-वेर्माडि पडेद महिमोन्नतियम् । भूतळदोळ् शान्तरनुप- । मातीतं चकि कुडल पडेदनमोघ ॥ अर्द्ध-पथमिदिर्गे वोन्दु तद् अर्द्धासनमेनिप लोह विष्टरदोक् सम्- । वर्द्धित-शान्तरनेनिप ध - | नुर्द्धरन चक्रवर्त्ति निलिसिदनेसेयलू || व || इन्तेनिसिदुन्नतिय ताब्दि तन्न मण्डळदोळगण राज्य - कण्टकर निष्कण्टकं माडि तनगे नन्निये निज-गुणमध्य कारणदि नन्नि - शान्तरनेम्ब पट्टम तादि पल-कालदिं परायत्तमाद भूमिय स्वायत्त माडि जगदेक-दानियेनिसि लोकदर्तिथ जनक्के पिरिदनित्तु सम्यक्त्व - रत्नाकरनु जिन - पादाराधकनुमेनिसियुमेल्ला - समयगळ स्व-धर्मदिं नडयितुं पराङ्गना-सहोदरनेनिसि वीरदोळ वितरणदोळ धर्मदो गौचदो लोकदोळ् पेररिल्लेनिसि नडेदु बन्धु-जनमुम स्व- देशमुम रक्षिसि चट्टल- देविय कुमारर ओहमरसनु बर्म- देवनु तामु पोम्बुचंदोळ् सुखदिं राज्य गेय्युत्तमिई धर्मं प्रागेत्र चिन्तेदेम्ब] वाक्यार्त्यमुम भाविसियरुमुळि - देवन गावब्बरसिंग वीरल-देविगं राजादित्य- देवङ्ग परोक्ष-विनयम माडलेदुर्णी-तिळकमेनिसिद पञ्च वसदिय मार्क्युद्योगमनेतिकोण्डु || कं ॥ 'श्री विजय - देवरुग्र-त- ! पो-विभवर् ग्गुरुगळखिळ-शास्त्रागम-स- । भावितरेनिसलू चट्टल- } देवि कृत- पुण्यवन्ते विश्वम्भरेयोक् ॥
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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