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________________ जैन- शिलालेख संग्रह २० मथुरा - प्राकृत - भग्न | [१] वर्ष ५ अ १. सिद्ध[म् ] स ५ हे १ दि १०२ अस्य [[] पूर्व[]] ये कोट्टि [यातो ] । २. [ग] णातो ब्रह्मदासिकातो उच[]] ना ( क ) रितो २० [ शाखातो ] १. [] गृहात स[-भोगातो... २. स निड (2) स १ • • बोधिला ए वासुदेवा वि २. सर्व-सत् [त्वा] न[म् ] []त-सुख[[] ये । 1 अनुवाद - सिद्धि हो । वर्ष ५, हेमन्तका पहिला महिना, १२ वाँ दिन । इस दिन कोट्टिय गण, ब्रह्मदासिक (कुल), उचेनाकरी ( उच्चानागरी) शाखा, (श्रीगृह ) सम्भोग ..... "के"" ....... (प्रार्थना पर ) सब जीवोंके हित और सुखके लिये ' ***** 1 [IA, XXXIII, p. 36-37, n° 5 ] .... " २१ मथुरा - प्राकृत भन [ ? ] वर्ष ५ तो पतिव पूये कु महिलनस्य शिष्य अगरिकतो [ यह शिलालेख अगरिक के किसी दानका उल्लेख करता है । गरिक महिलनके शिष्य थे। यह दान सं० ५ के वर्ष में, शीतऋतु के चौथे महीने के २० वें दिन किया गया । ] [A Cunningham, Reports III, p 31 n° 3] "ब्रह्मजाति स ५ हे ४ दि २० अस्य ·
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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