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________________ २७२ जैन-शिलालेख-संग्रह गुडिगेरी-कन्नड़-भन्न [शक सं० ९९८-१०७६ ई.] १- - - लवर बसदि [ म्|| || सर -- - - -- ------- 00 -- नय-मूकरनन्तदु' मागे वान२ याकरनभयाकर द्विज-दिवाकरन्- --- भीकरं बुध-निशाकरनुद्घयश प्रभाकरम् ॥ अन्तेनिसिद पेगडे ३ प्रभाकरय्यननुभवणेयल्ल ॥ ॐ खस्ति समस्त-भुवनवलयनिलय-निरतिशय-केवलज्ञान-नेत्रतृतीय-विराजमानभगवदर्हत्सर्वज्ञवीतरागपरमेश्वरपरमभट्टारकमुखकमलविनिर्ग तानेक-सदसदादिवस्तुखरूपनिरूपणप्रवीणसिद्धा५ न्तादि-समस्तशास्त्रामृतपारावारपारगरुमनेकनृपतिमकुटतटघटि तमणिगणकिरणजलधारावातावदातपूतचर६ णारविन्दरु बुधजनमनःपुण्डरीकवनमार्तण्डर पट्तर्कपण्मुखरु परमतपश्चरणनिरतरु परवादिशरभभेरुण्डापर७ नामधेयरम्प श्रीमत् श्रीनन्दिपण्डितदेवराचार्य्यरागि तपो राज्य-गेय्युत्तमिरे ॥ १ ॥ जिनसमयागमाम्बुनिधिपारगरु८ प्रतपोनिवासिगळ् मनसिज-बैरिगळ शम-दमाम्बुधिगळ् वुध सज्जनस्तुतबिनतनरेन्द्ररुन्द्रमकुटार्चितपादपयोज९ युग्मरेम्बिनितु महत्त्वदि सिरियनन्दि-मुनीन्द्ररे देवरुर्वियोळ् । अवर शिपितियर ॥ शम-दम-यम-नियमयुतबि
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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