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________________ जैन-शिलालेख संग्रह चित्राम्बर-कनक-रजत-मणि-मौक्तिकमम् । पात्रमरिदीव-गुणकति-1 मात्रेयरेय्दिपरे चागियब्बरसियरम् ॥ (पूर्वमुख ) वृ ॥ अतिशयमप्प रूपिनोळुदारतेयोळ् विनयोपचारदोळ् । पतिगतिभक्तिनोळ् विपुळ भोगदोळि पेरतेननेम्वे माण् । रतिगनुसारि पार्वतिगे तोडु कुजातेगे पाटि नोडरुन् धतिगेणे वासवाङ्गनेगे पासटि चागल-देवि धात्रियोळ् ।। येनिसिद चागल-देवि निज-वल्लभं वीर-शान्तरन कुल-देवते नोकियब्बेय बसदिय मुन्दे मकर-तोरणम माडिसि ।। मत्त बळिगावेयले चागेश्वरमेम्ब देगुलम माडिसि पलवरु ब्राह्मणर कने-दानम माडिसि महादानङ्गेप्दु' वन्दि-वृन्दकवाश्रितर्ग पोन्नु बुट्टिगेयुमं वेपन्नेगमित्तु चागम मेरेदम् ।। अन्तु नेगई चागल-देविय तायेनिप अरसिकब्बे प्रसिद्धकेसेदळ सान्तरन मनेय सर्व-प्रधान ब्रह्माधिराज काळिदासय्यबगेद (पश्चिम मुख) श्री-लोक्किय बसदिगे देकरसं जम्बहळिय विट्ट श्री-माधवसेन-देवङ्गे धारा-पूर्वक माडि कोट्टम् ॥ [जव, (उन्हीं चालुक्य पदों सहित ), त्रैलोक्यमल्ल देव समुद्र-पर्यन्त दुनियाके राज्यपर शासन करनेमे लगे हुए थे --- तत्पादपनोपजीवी (नं. २१३ वाले लेखमे जो ननि-शान्तरके पद है उन्ही पदो सहित) त्रैलोक्यमल्ल वीर-शान्तर-देव, सान्तलिगे हजारको मुक्त करके, अपने वशकी राजधानी पोम्बुच्चमे शासन कर रहा था:(उक्त मितिको),- अपने वशके प्रसिद्ध नगर पोम्बुर्च में वीर-भूपालकने बहुतसे जिनमन्दिर बनवाये। इसी पोम्बुचमे जिनदत्तने देवी (संभवतः पद्मावती देवी) के प्रसादको प्राप्त करके एक राक्षसके पुत्रको अपने भुजबलसे भयभीत कर दिया था। वीर-भूपालने नोक्कियब्बे जिनमन्दिर बड़ी शोभाके साथ खडा किया था।
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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