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________________ २३६ जैन-शिलालेख-संग्रह ‘चिक-हनसोगे-कन्नड़ [विना काल-निर्देशका, पर संभवतः लगभग १०६० ई० का] [चिक-हनसोगे (हनसोगे परगना) में जिन-वस्तिके दरवाजेके उपर] श्री-वीर-राजेन्द्र ननि-चङ्गाच-देवाडिसिद पुस्तक-गच्छद वसदि [वीर-राजेन्द्र नन्नि-चङ्गान्व-देवने पुस्तकगच्छकी बसदि वनवाडे ] [EC, IV, Yedatore ti, no 22 ) चिक्क हनसोगे-कन्नड। [विना काल-निर्देशका, पर सम्भवत' लगभग १०६० ई.] [जिन-बस्तिमें, दरवाजेपर पड़े हुए पत्थरोपर ] दशाशिर-प्रहारियप्प रामस्वामि त्रि परमेश्वर-दत्तिय शकनोड विक्रमादित्यं पडिसलिसि-तान"...."मुन्निनन्ते बडगण-तुम्बिन नी-रिदनितु नेलन ख........ .."ताम्ब-शासन-पूर्वक कोहरदं मारसिंह-देव पडिसलिसलेन्ता-परमेश्वर-दत्तिय वडगण तुम्बिन नीवरिदनितु......"मुन्निनन्ते कादना रामर दत्तिय तात्र-शासन • पडिय "मडि ईयक्कर बरेदवद ननिचङ्गाळ्य-देव'नर्णव माडिसिद बसदिय तुम्बिनलकखु प्रतिमेयु माडिद तप्पिदर्गे कविलेगे तप्पिट पाप [पहलेकी ही तरह, उत्तरीय नहरसे, सीची गई सारी जमीन,-दशशिर (रावण) के वधक रामस्वामीके द्वारा जो छोड दी गई थी, परमेश्वरने जिसे दिया था, और जिसे इनामके तौर पर शक तथा विक्रमादित्यने भी दिया था,-ताम्बेके शासन (लेख) पूर्वक..... दी। परमेश्वर-प्रदत्त तथा उत्तरीय नहरसे सींची गई सारी जमीनका दान मारसिंह-देवने किया और पहलेकी ही तरह उसका रक्षण भी किया। -
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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