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________________ अगडिका लेख २३५ एडेमलेय सासिरु गळ्देय मेक्कळ तम्म तम्म गळ्देय मेगे एल्ला-कालमु पल दप्पढे जकि-गोळगमेन्दित्तकैडमन्तियोम् मादेर रचिपन्दूरुग एञ्जलिग सिरिपुरसनुमित्तुनु मूगण्डग-भत्तं पोकुळि-मक्किय पलिसिन तारनित्तरुज्जेनियोळ नाल्-गण्डग भगमनित्तरवाडियोळपिन्दगर-ण्डुग मूगण्डग मित्तमुळूि-भागदोळ् ........... ....."मूगण्डुगमित्तं शालादित्यर कप्पिगमिर्कण्डुग......"मुळियर कुन्द कोण्टापन्दियो सार........ ....... मेदुकय्य किरगादण्ण भू-गण्डुग मण्ण 'म् इकुळ-भत्तमुमन .. """न्ददणिकिग देपण्ण मूगण्डु ....... मित्तर्.." योळ श्री-व" . [जिस समय खचर-कन्दप सेनमार पृथ्वीपर राज्य कर रहे थेनिरवद्यने, जो देवगण और पाषाणान्वयके अङ्कदेव-भटारके शिष्य महीदेव भटारका गृहस्थ-शिष्य था और जिसने महेन्द्र-बोळलुको पाया था,मेलस चट्टानपर निरवद्य जिनालय खड़ा किया; और खचरकन्दर्प सेनमारकी कृपा प्राप्तकर निरवद्यको एक 'मान्य' मिला, जिसे उसने जक्किमान्यका नाम देकर निरवद्य-जिनालयको भेंट कर दिया । __ और एडेमले हजारने अपनी हरएक धान्यके खेतोकी फसलसे कुछ धान्य (चावल) दानरूपमे हमेशा के लिये दिया। . और भी जिन लोगोने अनाजका दान किया उनके नाम दिये है।] [EC, VI, Chikmagalur tl, n° 75] १९४ अगडि-कन्नड़ [विना काल-निर्देशका, पर सभवत: लगभग १०६० ईसवी ] [अगडि (गोणीवीडु परगना] मे, छठे पाषाणपर] (ऊपरका हिस्सा टूट गया है) सोसवूर सेटिगळ लोकजिवनिगे निषिधिय कल्ल नखर-समूह नट्टरु [सोसवूरके व्यापारी लोकजितके इस स्मारकको उस नगरके व्यापारी लोगोने खड़ा किया।] [EC, VI, Mūdgere tl, n° 16 ]
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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