SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 196
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१३ मथुराका लेख विश्व-विस-हासर् पतिहितामरणम् ॥ शक नृप-कालातीतसंवत्सरशतङ्गळ् ९४४ नेय दुर्मुखि (दुर्मति ) संवत्सरद फाल्गुण-मास-सुद्धपञ्चमी-सोमवार पुनर्वसु-नक्षत्रदन्दु गङ्ग-पेमनडिगळु कर्नाटनाळुत्तमिरे तम्म स्व-दोराळदन्दु ......"नव जिनालयक्के पेर्मनडि जीवितम् ......"द बलोर-कट्टलाळ्वाद केरेय मेछुकं बोयिस कट्टेय कट्टिसि बनिरसि मुन्न तव'""कोळग मण्णु बिट्ट दोन्द.. केनेंगे....."मुम विट्ट मिदनदि कोटि-कविलेय ब्राह्मणरु काशियुमनलुकिरे बहुभिर्वसुधा भुक्ता राजमिस्सगरादिभिः । यस्य यस्य यदा भूमिस्तस्य तस्य तदा फलम् ॥ [इस लेखमें 'पेगडे-हासम्' के द्वारा, उक्त मितिको, बलोर कटके गहरे तालावकी सीढियोंके बनवाने, बांधके निर्माण कराने, नहर या मोरीके बनाये जाने, तथा.............. एक 'कोलग' भूमिके देनेका जिक्र है। उसके समयमें कर्णाट (कर्नाटक) पर गड्न पेमनहि शासन कर रहे थे। यह पुण्यकार्य पेमनडिके दीर्घजीवनकी कामनाके लिये उसकी सरकारके स्थानमें एक नये जिनालयके रूपमें किया गया था।] [EC, III,Mandya IL, n° 78] मथुरा-संस्कृत [संवत् १०४०=१०२३ ई. सन् ] १ ओ श्रीजिनदेवः सूरिस्तदनु श्रीभावदेवनामाभूत् । ___ आचार्यविजयसिङ्ग२ स्तच्छिष्यस्तेन च प्रोक्तैः ॥ [१] सुतावकर्नवग्रामस्थानादिस्थै खसक्तितः । १ सवत्सर 'दुर्मुख' दिया हुआ है। यह स्पष्टत गल्तीसे लिखा गया है। इसकी जगह 'दुम्मति होना चाहिये जो शक ९४४ से मेल खाता है।
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy