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________________ लक्ष्मेश्वरका लेख ५. पञ्चाइतल वाटिका ? ६. आन वाटिका, या भामके पेडोंका बगीचा ७, धन वाडी, या धन उद्यान-भवन । ए. कनिघमने सम्बत् १०११ को सुधारकर और युक्तिपूर्वक सिद्ध कर इसको सं० ११११ पढ़ा है । शिलालेखका पूरा श्लोक प्रो० एफ् कीलहोमैंने इस तरह शुद्ध किया है निजकुलधवलोय दिव्यमूर्तिः सुशीलः ___ शमदमगुणयुक्त सर्पसत्वानुकम्पी । सुजनजनिततोपो धनराजेन मान्य प्रणमति जिननाय भव्यपाहिल्लनामा ॥ १ ॥] १४८ सुहानिया [ग्वालियर]--संस्कृत । [स० १०१३-९५६ ई .] सबत् १०१३ माधवसुतेन महिन्द्रचन्द्र केनकमा ( खो ? ) दिता [सुहानियामे माधवके पुत्र महेन्द्र चन्द्र ने एक जैन मूर्ति प्रतिष्ठापित की । संवत् १०१३।] [ASB, XXXI, P 399, a, P 410, t] [ ई० ए० जित्द ७, पृ० १०१-१११ नं० ३८ १-५१ की पत्तियाँ] लक्ष्मेश्वर-संस्कृत। [शरु ८९०-९६८ ई.] श्रीमत्परमगम्भीरस्याद्वादामोघलाञ्छनं । जीयात्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनम् ॥ १ यह 'प्रतिष्ठिता' का अपभ्रश मालूम पड़ता है।
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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