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________________ जैन- शिलालेख संग्रह १४७ खजुराहो- संस्कृत ( विक्रम संवत् १०११ = ९५५ ई० ) १ ॐ [I] सनत् १०११ समये || निजकुलधवलोयं दि२ व्यमूर्ति खसी (शी) ल स (श) मदमगुणयुक्त सर्व्व३ सत्वा (सा) नुकपी [1] खजनजनितोपो धांगराजेन ४ मान्य प्रणमति जिननायोय भव्यपाहिल (छ) - ५ नामा | (II) १ ॥ पाहिलनाटिका १ चन्द्रवाटिका २ ६ लघुचद्रवाटिका ३ स (श) करवाटिका ४ पंचाइ७ तलनाटिका ५ आम्रनाटिका ६ ध (ध) गवाडी ७ [I] ८ पाहिल से (गे) तु क्षये क्षीगे अपरवसो (गो) यः कोपि ९ तिष्ठति [[] तस्य दासस्य ढासोय मम दतिस्तु पाल१० येत् ॥ महाराजगुरुस्त्री (श्री) वासवचंद्र [11] वैसा (श) ष (ख) ११ खुदि ७ सोमदिने ॥ १९० [ एपिग्राफिआ इण्डिका, जि० १, पृ० १३६ ] [El 1, p 135-136] [ यह शिलालेख खजुराहो से उत्कीर्ण है। इसमे ११ पक्तियाँ है या धान राज्यकालमे विक्रम सं० । जिननाथके मन्दिरके वायें दरवाजेपर इसमे बताया गया है कि राजा ध १०११ या ९५४ ई० में भव्य पाहिल या पाहिलने जिननाथ मन्दिरको बहुत तरह की वाटिकाओं ( छोटे उद्यानों - या बगीचो) का दान किया । दानोके निम्नलिखित नाम हैं.. १. पाहिल वाटिका, या पाहिल बगीचा २. चन्द्र-वाटिका, या चन्द्र बगीचा ३. लघु चन्द्रवाटिका, या छोटा चन्द्र बगीचा ४. शकर-वाटिका, या शकर बगीचा
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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