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________________ १६५ गिरनारका लेख ॥जसुतारूडीगांगीप्रभृती || नाथप्रासादा कारिता प्राताप्ट ॥ द्रसूरि तन्पट्टे श्रीमुनिसिंह ॥ .... . ...."कल्याणत्रय अनुवादः-स्वस्ति श्री प्रति . . ......श्री नेमिनाथको नमस्कार... ...वर्ष......फाल्गुन सुदी ५, बृहस्पतिवार, श्री • • .... श्रीमहीपाल, महाराज और........... के तिलक.. . .फाऊ नामकी वयरसिंहकी भार्या, उसका पुत्र माननीय ..... उसके पुत्र माननीय साईआ और मेलामेला......... • उसकी पुत्रियाँ रूडी, गागी इत्यादि । इन सबने एक नेमिनाथका मन्दिर बनवाया -जिसकी प्रतिष्ठा . . ..इसरिके पट्टपर विराजमान श्रीमुनिसिंहने की ....... .....कल्याणत्रय ।। [ASI, ITI, P 353-354, n° 11 १४२ सूदी (जिला-धारवाड़) संस्कृन और कन्नड़ । शक सं ८६०-९३८ ई० लेख पहला तानपत्र १ श्रीविभाति सुवि (धी)य॑स्य निरवद्य [1] निरत् (य) अया तस्मै नमोऽहते २ लोक-हित-धर्मोपदेशिने ॥ जित [-] भगवता [गत]-धनग [ग]नाम३ न पद्मनाभेन [I] श्रीमजाह्नवीय कुलामि]ल-व्योमावभासन भास्करः ॥
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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