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________________ १६० जेन-शिलालेख संग्रह यह लेख धारवाड जिलेके मूलगुण्डमें वैश्य जातिके चन्दरायके पुन चीकार्यके द्वारा एक जैनमन्दिरके निर्माणका तथा उस मन्दिरकी तरफस कुछ भूमिदानका उल्लेख करता है । यह निर्माण और दान दुन्दुभि सवत्सर शक ८२५ में किया गया था । उस समय राजा कृष्णवल्लभ राज्य कर रहे थे। लेखगत 'धवल जिलेसे देशके किस भागसे मतलब है, यह स्पष्ट नहीं है । यद्यपि यह लेस लघु है, पर महत्त्वपूर्ण हैं । इसमे सन्देह नहीं है कि इस लेखका 'राजा कृष्णवल्लभ' वही हे जो राष्ट्रकूट या रह कुलके राजा कृष्णराजदेव है और जो इसी पुस्तकके शिलालेस नं० १३० के अनुसार शक ७९८में राज्य कर रहे थे । वादके अन्य शिलालेसोमे इन्हे ही रवशका प्रथम राजा कहा गया है। पूर्ववर्ती चालुक्य राजाओके उत्तराधिकार और कालके विषयमे बहुतसे सन्देह उत्पन्न होते है, लेकिन हम जानते है कि उनमेसे तीन चालुक्य राजा राष्ट्रकूट युवराजोके साथ बहुत ही सीधे और घातक सघर्पमे आये है । वे तीन राजा जयसिह प्रथम, तैलप प्रथम और तैलप द्वितीय थे। राष्ट्रकूटवश और चालुक्यवशके पूर्ववर्ती राजाओकी बगावली यदि कालसहित सग्रह की जाय तो वह इस विषयमे बहुत महत्वपूर्ण सिद्ध होगी। ] [JB, X, P 190-191, 1ns n° 1] १३८ क्यातनहल्लिकन्नड। [विना काल-निर्देशका (सभवत. लगभग ९०० ई.)] _ भद्रमस्तु जिनशासनायानवरत · दखिलसुरासुरनरपतिमोलिभाला 'णारविन्द-युगल शरवळ-नीराज्य-युवराज [रप्प भद्र] आहु-चन्द्रगुप्त-मुनिपति-चरण मुद्राङ्कित-विशाळशि मान-जगल्लना(ला)मायितश्रीकल्वप्पु-तीत-सनाथ-बेल्गोळ-निवासि- • • श्रवणसङ्घ स्याद्वादाधारभूतरप्प श्रीमत्स्वस्ति सत्यवाक्यकोङ्गणि-[व] - । मूलमे "शक राजाके कालम ८२४ वर्ष व्यतीत होनेपर" ऐसा पाठ है।
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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