SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 147
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन- गिलालेख संग्रह १३५ चल्लीमलै – कन्नड़ | [ विना काल-निर्देशका ] ब - यह लेस बाईं तरफ से दूसरी प्रतिमा के नीचेका है । one श्री [II] अञ्जनन्दि-भटार अ [ति ] म [] म [[] उ [f] दा [7] [] १५८ अनुवाद – स्वस्ति । भट्टारक या भटार अजनन्दि ( आर्यनन्द्रि ) ने (इम) प्रतिमाको बनाया । [El, IV, n° 15, B ] १३६ वल्लीमलै -- कन्नड | [ विना काल-निर्देशका ] १ स्वस्ति श्री [II] वाणरायर २ गुरुगप्प भवन्दि-भ३ टारर शिप्यरम्प देवसेन - ४ भटारर प्रतिमा [[I] अनुवाद -- स्वस्ति श्री । यह प्रतिमा भट्टारक देवसेनकी है । ये देवसेन वाणरायके गुरु भट्टारक भवनन्दि ( भवनन्दि ) के शिष्य है । [El IV, n° 15 C] १३७ मूलगुण्ड ( जिला धारवाड ); संस्कृत । शक ८२४=९०३ ई० लेख श्रीमते महते शान्त्ये श्रेयसे विश्ववेदिने [[] नमश्चन्द्रप्रभाख्याय जैनशासनमृद्वये [II] शकनृपकालेष्टशते चतुरुत्तरविंशदु (त्यु ),
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy