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________________ बल्लीमलेका लेख २ नातन ननय । भुवनीश रणविक्रमन्नवन मक (ग) न् रा ३ जमल्लन् अमलिनचरितन् [॥ १] कण्ड गिर [f] वरमना भूम ४ डलपति राजमल्लन् अभयनुदारम् [0] पण्डितजन५ प्रिय कैय्-कोण्डान् कोण्डन्ते वसनियम्माडि६ सिदान ॥ [२] अनुवाद-(लोक १) शिवमारके पुत्रोमें सबसे अच्छा पुत्र श्रीपुत्प नामका (राजपुत्र) था। उसका पुत्र लोकप्रभु रणविक्रम हुआ । उसका पुत्र अमलचरित राजमल्ल हुआ। (लोक) इसको सबसे अच्छा पर्वत समझकर, भूमण्डलपति, अभय एवं उदार तथा पण्डितजनप्रिय राजमलने इसे अपने अधिकारमे कर लिया, और तत्पश्चात् इसपर एक वसति (मन्दिर) वनवाइ । [, IT, n' 15, A] वल्लीमलै-कन्नड़ । [विना काल-निर्देशका (यह लेस दाहिनी तरफसे पहली प्रतिमाके नीचेका है) १ स्वस्तिश्री [1] बालचन्द्र-भटारर २ शिष्यर् अजनन्दि-भटारर ३ माडिसिट प्रतिमे गोवर्धन ४ भटाररेन्दोडमबरे [1] अनुवाद- यह प्रतिमा भहारक बालचन्द्र के शिप्य भहारक अजनन्दि (आर्यनन्दि) के द्वारा बनवाई गई; और प्रतिमा 'गोवर्धन भट्टारक' की है। [LI, IV, n° 15, D]
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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