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________________ १३१ कडवका लेख वार) में एदेदिण्डे-विषयका पेडियूर नामका गाँव, सर्व करोसे मुक्त करके, जलधारापूर्वक दानमें दिया। इस गाँवकी सीमायें । पदरियूरमें + भाग दानमे दिया गया। वे ही शापात्मक श्लोक ।] [NC, LX, Nelamangala ti no 61] १२४ कडव-संस्कृत तथा कन्नड । (सन्देहास्पद) [शक ७३५८१२ ई.] राष्ट्रकूटवंशोद्भव द्वितीय प्रभूतवर्ष महीपतिका दानपत्र । १ॐ स्वस्ति [I] विस्तृत-विशद-यशो-वितान-विशदीकृताशाचक्र वाल करवाल-प्रवालावतंस-विराजित-जयलक्ष्मी-समालिं२ गित-दक्ष-दक्षिणा-भूरि-भुजार्गल. गलित-सार-शौर्य-रस-विस र-विसखलीकृतोग्रा३ रि-वर्ग. वर्ग-त्रय-वर्गणैक-निपुणोऽचलाभार-चाची-विशेप निर्जितोर्चीमण्डलोत्सवोत्पादनपर. ४ पर-भूपाल-मौलि-माला-लीटाङ्गि-इन्दारविन्दो गोविदराजः ॥ तस्य-सू४'नु. सुतरुण-भावोदय-दया-दान-दीनेतर-गुण-गण-समर्पित-बन्धु जन सक६ ल-कलागम-जलधि-कलशयोनि मनुदर्शितमार्गानुगामी राष्ट्र कूट-कुला७ मल-गगन-मृगलाञ्छन. बुधजन-मुख-कमलाशुमाली मनोह८ र-गुण-गणालकार-भार ककराज-नामधेय. [1] तस्य पुत्रः स्व-वंशानेक नृ९ प-सघात-परम्पराभ्युदय-कारण. परम-ऋपि-ब्राह्मण-भक्ति
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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