SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 106
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०८ जैन-शिलालेख संग्रह दु एल्दु ढवे तम्म क्षेमकिरदल्लि मेचिर ताळ्बदु परत्रे यपुढेवदेरू महाप्रभु-गोवपश्यन् इन्त् इन्टपु समाधियोळे मुडिपि नान्दिदन्नितमरेन्द्रभोगम ॥ पदेदोम् श्री-पुरुपयल् आम्मु-मोदलोळ कल्नाडन् अन्दो बळेक एदेयो अकुडु भूतिमूतुगानो टोत धाण धीमे सळे पडेटे... पितृ-कळत्र-मित्र-जनम काव्यान्य ताब्द अप्पोडी-नुडियल वेल्कुमे पेम्पन् ओप्प गुणते तोळमिकिन्द गोपय्यनम् ॥ [महाप्रभु गोवपय्यको श्रीपुरुषकी तरफसे भूमि-दान मिला था और वे (गो प.) समाधिमरणपूर्वक मरे थे।] [EC, III, Mysore ti, no 6] १२० देवलापुर-कन्नड। विना कालनिर्देशका (सभवतः लगभग ७५० ई.) [देवलापुर (कूइनहल्लि तालुका), मारीगुडीके पूर्वमे ] स्वस्ति श्रीपुरुप-महा ...... पृथुवी-राज्यकेये अरट्टि " रम्मगन्दिर सिंग टीसे बीळादु अरहि-तीर कुडलरद गोट्टे मडिओडे-यम्बर आज्विकर (पृष्टभागपर) नोकज-ओडे आग्गढीकड · · कोट्ट नेल तेनेन्वक काहूकु साक्षी कुडलू पोद्भुलरु एकमडियरु एठिरियरु मद्गरु कागबरु साक्षि आग कोटदु आळ् आळ् किडिशिटोन वारणासिया शासिर-कविले शासिरपावर कोन्द कोले आका कोडिशिदोनु ....."कड्डुवेडिळोनुडि तेने.. विद स्वचोनु । अरटिंग तकर कुडलूर आव्वत्ति
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy