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________________ १०२ जैन-शिलालेख संग्रह वींसे शुरू होता है । उस समस्त लेखका सिर्फ कुछ भाग ही उस पुस्तकमे पापाण-लेखपरसे लिया गया है, पूरा लेख नहीं । इसलिये उस लेसका यहाँ देना मुश्किल होनेसे सिर्फ उसकी विगत यहाँ दी जानी है। उस विशाल लेखकी ६९ वी पंक्तिसे एक दूसरा पश्चिमी चालुक्य शिलालेख शुरू हो जाता है । इस लेखकी ६९ से ८२ तककी पक्तियाँ यद्यपि अस्पष्ट है, फिर भी अति सुरक्षित है; उसके नीचेकी पाँच पक्तियोका भी कुछ निशानोसे पता चल जाता है, यद्यपि अक्षर इतने विसे हुए हैं कि पढनेमें नहीं आते । इसमे पो(पु)लिवेशीवल्लभसे लेकर विनयादित्य-सत्याप्रय तककी वशावली है और मूलमद्ध अन्वयकी देवगण शाखाके क्तिी आचार्यको, उसके द्वारा दिये गये, दानका उल्लेख है । यह दान ६०८ शक वर्पके बीतनेपर जब उसके राज्यका पाँचवा या सातवा वर्ष चालू था और जब उसकी विजयका कैम्प (विजयस्कन्धावार) रकपुर नगरमें लगा हुआ था, माघ महीनेकी पूर्णमासीको दिया गया था। यह काल ७७-७८ पक्तियोमें यो दिया हुआ है -अष्टोत्तर-पट्छतेसु शकवर्षेप्वतीतेषु प्रवर्द्धमानविजयराज्यपञ्चम ( ' सप्तम)-सवत्सरे श्री रक्तपुरमधिवसति विजयस्कन्धावारे माघमासे पौर्णमास्याम् । यहाँ वार (दिन) नहीं दिया हुला है।) [इ० ए० ७, पृ० ११२, नं० ३९, चतुर्थभाग] श्रवणबेलगोला (विना कालका)-कन्नद । (देखो "जैन शिलालेख संग्रह प्रथम भाग"।) ११३ लक्ष्मेश्वर-सस्कृत। [शक ६५१ ई. सन् ७२९ ] [यह लेख (मूल) इलियटके हस्तलिखित संग्रह (Elliot's Ms. Collection ) की पहली जिल्दमें पृष्ठ २२ पर ८७ पक्तिके एक बड़े लेखमें दिया हुआ है । उसमेंसे पंक्ति २८ से शुरू होकर पंक्ति ५३ तक
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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