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________________ जैन - शिलालेख संग्रह नियुक्त किये गये थे । यहां 'निर्ग्रन्थ' शब्दले जैनोका तात्पर्य है । इसपरसे उस समयके अनेक अग्रेसर धर्मोम जैनधर्म भी मालूम पडता है कि एक था । ] ४ - हाथीगुफाका शिलालेखे – प्राकृत | जैन- सम्राट् खारवेलका इतिहास | [ मौर्यकाल १६५ वॉ वर्ष ] [१] नमो अरहतान [1] नमो सवसिधान [] ऐरेन महाराजेन महामेघवाहनेन चेतराजवस धनेन पसथसुभलखनेन चतुरंनल थुन-गुनोपहितेन कलिंगाधिपतिना सिरि खारवेलेन । [२] पन्दरसवसानि सिरि कडार - सरीर बता कीडिता कुमारकी - डिका [[] ततो लेखरूपगणना यवहार - विविविसारदेन सवविजाबढातेन नववसानि योवरज पसासित [I] सपुण चतुवीसति - वसो तदानि ववमानसेसयोवे (च) नाभिविजयो ततिये (३) कलिंगराजवसे पुरिसयुगे महारजाभिसेचन पापुनाति [1] अभिसितमतोच पधमे बसे बात - विहत गोपुर - पाकार -निवेसन पटिसखारयति [1] कलिंनगरि [f] ख-बीर इसि - ताल तडाग - पाडियो च बन्धापयति [I] सवुयान- पतिसठपन च [ ४ ] कारयति [1] पनतीसाहि सतसहसेहि पकतियो च रजयति [I] दुतिये च बसे अचितयिता सातकर्णि पछिमदिस हय - गज-नर-रध-बहुल दड पथापयति [I] कण्हवेना गताय च सेनाय वितापति' मुसिकनगरं [1] ततिये पुन बसे १ जैनहितैपी, भाग १५, अङ्क ५, मार्च १९२१, पृष्ठ १३९-१४५ से २ वितापित इति वा । उद्धृत
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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