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________________ अंक २] तीर्थयात्राके लिये निकलनेवाले संघोंका वर्णन से भरे हुए थालोका रखना, रेशम आदि मूल्यवान् जो कैदी थे उन्हें बन्धन मुक्त किये और सकल वस्त्रके बने हुए चंदुए, अंगढंछन, दीप, तैल, धौती, संघकी पूजाका महामहोत्सव किया । संघके प्रयाचन्दन, केसर, पचंगेरी, कलश, धूपदान, आर. णसमयमें सबसे आगे राजाका देवालय चलता ती, आभरण, प्रदीप, चामर, शृंगार, थाल, कच्चोल, था। यह देवालय सुवर्ण और रत्नोंसे जडा हुआ घंटा, झल्लरी, पटह आदि विविध वाद्य; इत्यादि था और राज्यके पट्टहस्तिकी पीठ पर स्थापित प्रकारकी मंदिरमें काम आनेवाली सब चीजोका किया हुआ था। इसमें सुवर्णकी बनी हुई जिनमूदान करना; इत्यादि प्रकारके जो तीर्थ कृत्य हैं उन्हें र्ति स्थापित थी। राजाके इस मुख्य देवालयके विधिपूर्वक पूर्ण करे । इसके बाद तीर्थस्थान पर पीछे पीछे क्रमसे ७२ सामंतोंके, २४ मंदिर कोई छोटी बडी देवकुलिका करावे । सूत्रधारादि. बनवानेवाले बाहड मंत्री और उसके साथ अन्य क कारीगराका सत्कार करे । तीर्थका कोई हिस्सा मत्रियोंके, तथा १८०० बडे बडे व्यापारियांक देवानष्ट-भ्रष्ट होनेकी अवस्था हो तो उसे ठीक करवा लय चलते थे । इन सब देवालयों पर श्वेतातपत्र देवे | तीर्थकी रक्षा करनेवालोंका बहुमान करे। रक्खे हुए थे और अंदर सुवर्ण और मोतियोंसे जडे तीर्थके निर्वाहले लिये कोई जमीन आदिका स्थायी हुए छत्र-चामरादि शोभ रहे थे।.......इस संघमें दान करे । साधर्मिवात्सल्य करे । गुरुओं और कुमारपाल राजा मुख्य संघपति था और उसके संघजनोंको पहरामणी दे कर भक्तिभाव प्रकट करे साथ ७२ सामंत, वाहड ( वाग्भट ) आदि मंत्री, और भोजक, संवक, गंधर्व, आदि जैन याचक जन राजमान्य नागसेठका पुत्र सेठ आभड, पड्भापाकहो उन्हें उचित दान वितरण करे। इत्यादि। विचक्रवर्ती श्रीपाल और उसका पुत्र दानवीर इस प्रकार संघ ले जानेवालेके लिये मुख्य कविश्रेष्ठ सिद्धपाल, कपर्दी भंडारी, प्रहलादनमुग्न्य कृन्य बतलाये गये हैं। पुर (पालनपुर ) का संस्थापक राणा प्रहलाद, ९९ प्राचीन समयमै, जैन इतिहासमें प्रसिद्ध ऐसे लाख सुवर्णाधिपति सेट छाडाक, राजदौहित्रिक प्रायः सभी जैन राजा-महाराजाओंने और सेठं प्रतापमल्ल, अठारह सौ व्यवहारी, हेमचंद्रसूरि साहुकारोंने इस प्रकारके बडे बडे संघ निकाले थे आदि अनेक आचार्य, अनेक गांवों और नगरोसे और उनमें लाखों करोडो रुपये खर्च किये थे। आए हुए करोंडो मनुष्य, छहों दर्शनोंके अनुयायी, उदाहरणके लिये ऐसे दो चार प्रसिद्ध संघोंका, ११ लाख घोडे, ११ सौ हाथी, १८ लाख पैदल सि । पाही और अनेक याचक जन थे। राजा हमेशा यहां पर उल्लेख करना उचित मालूम देता है। चलता था और सो भी नंगे पैरोंसे । हेमचन्द्र गुजरातके परमार्हत राजा कुमारपाल चौलुक्य- सरिने उसे वाहन पर बैठजानेका अथवा तो पैरोंमें ने सौराष्ट्रके गिरनार और शQजयादि तीर्थाकी नेवगैरह पहर लेने के लिये आग्रह भी किया तो यात्राके लिये बडा भारी संघ निकाला था। उसके भी उसने वैसा नहीं किया। राजाके इस व्रतको बारेमें जिनमण्डन गणीने (संवत् १४९२) अपने करऔर भी संकडों संघजन उसी तरह चलने 'कुमारपाल प्रवन्ध' नामक ग्रंथमे जो उल्लेख किया संघके साथ समुदाय बहुत बडाहानस कहा है, उसका सार यहां पर दिया जाता है लोकोको रास्ते में कष्ट न हो इस लिये वह हमेशा पांच ___ हेमचन्द्राचार्यके मुखसे तीर्थ यात्रासे होनेवा कोसकी मंजल करता था।जगह जगह लड्डू, नालियला पुण्यलाभ सुन कर कुमारपालने भी तीर्थयात्रा करनेका मनोरथ किया और तत्काल सब सामग्री रआदिकी प्रभावना किये जाता था। जितने जितने एकत्र कर शुद्ध मुहूर्तमें यात्राके लिये प्रस्थान जिनमंदिर आते थे उन सब पर सुवर्ण और मोतिकिया। प्रस्थान करते समय उसने प्रथम, शहरके योसे जडी हुइ ध्वजाये चढाता जाता था और मंदिसभी चैत्यों (मंदिरों) में अष्टान्हिक उत्सव मना रमेकी प्रत्येक मूर्तिके लिये सोनेका छत्र और चामया। गांवमें अमारिपटह बजवाया । कैदखानाम रादि दान किये जाता था । गवि और शहराक
SR No.010004
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year
Total Pages137
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size11 MB
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