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________________ जैन साहित्य संशोधक [भाग : आदरपूर्वक आमंत्रण भेजे । भक्तिपूर्वक गुरुमहारा- आनेवालोंमेंसे यथायोग्य किसीको महाधर, किसीजको भी निमंत्रण करे । गांव में जीवहिंसा बन्ध को अग्रेसर, किसीको पृष्ठरक्षक और किसीको संघा. करानेके लिये अमारिपटह बजवावे । मंदिरोम ध्यक्षक आदि पद देकर तदनकल कार्यविभाग नि. महापूजादि महोत्सव मनावे । फिर, जो जो यत करे । संघके चलने-ठहरने आदिके सब संकेत मनुष्य संघमें साथ आनेकी इच्छा प्रदर्शित करें यात्रियोंको जाहिर करे-अर्थात् अमुक प्रकारकी उनमेंसे जिनके पास भत्ता न हो उन्हें भत्ता देव, सूचना मिलने पर यात्रियोंको ठहर जाना चाहिए, वाहन न हो उन्हें वाहन दवे, तथा जो बिल्कुल अमुक प्रकारकी सूचना मिलने पर चलना चाहिए, निराधार हो उन्हें मीठे वचनोंसे आश्वासन दे कर अमुक प्रकारकी सूचना मिलने पर एकत्र होना जिस वस्तुकी जरूरत हो उसको पर्ति करे । और चाहिए: इत्यादि सब बाते संघजनोंको स्पष्ट संमइस प्रकार गांवमें ढंढोरा पिटाकर सहायतादान झा देनी चाहिएं । रास्ते संघपतिको सबकी पूर्वक निरुत्साह मनवालोंको भी यात्राके लिये उत्ता संभाल रखनी चाहिए । कहीं किसीकी गाडी वगै पात्रियोंके ठहरनेके लिये, पडावोंमें रह तट जाय या और किसी प्रकारकी कठिनाई काम आने लायक छोटे बड़े ऐसे अनेक डेरे, तंबू, आ जाय तो उसे हर प्रकारसे सहायता देनी चाहिए। रावटी, चांदनी आदि तेयार करवाये । भोजनकी इस प्रकार प्रयाण करते हुए मार्गमें जितने गांव सामग्री के लिए कडाह, परांत, हंडे आदि भाजन और और शहर आवे उनके मंदिरों में स्नात्र-महोत्सव और पानीके संग्रहके लिये बडी बडी सोठियां, . ' करावे तथा उन पर महाध्वज चढावे । सब मंदिटांकियां आदि दर्तन बनवावे । मनुष्याक बठनक बाजे-गाजेके साथ जाकर दर्शन करे। जहां लिये तथा सामान भरनेके लिये गाडी, सहज- कीपर कोई मंदिरवगैरह जीर्ण-शीर्ण हालतमे दि. वाल, रथ, म्याना, पालखी, वैल (पोठ ) उंट, घोडा , खाई दे तो उसके उद्धार आदिका खयाल रक्खे। आदि सब प्रकारके वाहनोंका संग्रह करे । संघकी , रक्षाके लिये अच्छे अच्छे बहादुर और शूर सुभटो-: " जब दूरसे अभीष्ट तीर्थ-स्थलके ( पर्वतादिके ) को (सिपाहियोंको ) बुलावे और उन्हें अन्न र दर्शन हो तब सुवर्ण, रत्न या मोतियोंसे उसे बधा वे और यात्रियों को लडु आदि बांटकर तथा भोजन शस्त्रादि देकर उनका सन्मान करे । तथा गीत, - करा कर साधर्मिवात्सल्य करे यथोचित दान नृत्य और वाद्यविषयक सामग्रीको भी साथमें रक्खे-अर्थात् गान और नृत्य करनेवाले भोजको - देवे । फिर जब तीर्थस्थल पर पहुंचे तो बडे आडंगंधों को और बाजे बजानेवाले वजवश्योंको भी बरके साथ स्वयं प्रवेशोत्सव करे और दूसरोंसे संघके साथ रक्खे । इस प्रकार सवतरहकी तैयारी करावे । इस तरह तीर्थस्थानमें प्रवेश करके, प्रथकर अच्छे मुहूर्तमें शुभ शकुनोके साथ प्रस्थान विधिपूर्वक स्नान करे । इसके बाद, माला पहरना, म हर्षपूजा, फिर अप्टोपचार पूजा, और तदनंतर मंगल करे । प्रस्थान करनके अवसर पर, सकल समुदायको-संघके साथ चलनेवाले तथा गांवमें घृतधारा देना, पहरामनी रखना, नवांग जिनपूजा बसनेवाले सभी सार्मिभाइयोंको-एकत्र उत्तम करना, पुष्पगृह और कदलीगृह बनवा कर महाप्रकारके भोजन कराकर; ताम्बूल आदि मुखवास पूजा रचना, बहुमूल्य वस्त्रादिकी बनाई हुई महादेकर, तथा पंचांग वस्त्रादि पहरा कर सत्कृत करे। ध्वजा ढाना, रात्रिजागरण करना, नानाप्रकारके तदनन्तर. सुप्रतिष्ठ, धर्मिष्ठ, पूज्य और भाग्यवान् गीत और नृत्यादिसे उत्सव मनाना, तीर्थनिमित्त मनप्योंके हाथसे 'संघाधिपत्य' कातिलक करावे। मित चावल आदि-आदि शब्दसे सुपारी, लावग, उपवासादिक तपस्या करना, लक्ष या कोटि परिस्वयं संघकी महापूजा करे और इस प्रकार दूस- एलायची, नालियर इत्यादि समझने चाहिएरॉके पाससे भी ‘संघाधिपत्य ' का तिलक करावे। चढाना, २१, ५२, ७२ या १०८ संख्यामें फल आदि यह सब काम हो चुकने पर फिर संघके साथ भेंट धरना, भक्ष्य ऐसे सब प्रकारके भोज्य पदाथों
SR No.010004
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year
Total Pages137
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size11 MB
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