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________________ 啦 जैन साहित्य संशोधक रणकी टीकाका और दूसरा यंत्रमंत्रविषयक शास्त्रका | पूज्यपादद्वारा पाणिनिकी टीकाका लिखा जाना असंभव नहीं हैं; परन्तु साथ ही वृत्तविलास को पूज्यपाद के जिनेन्द्रबुद्धि नामसे भी यह भ्रम हो गया हो तो आश्चर्य नहीं। क्यों कि पाणिनिकी काशिकावृत्तिपर जो न्यास है उसके कर्त्तीका भी नाम' जिनेन्द्रबुद्धि । इस नामसाम्यसे यह समझ लिया जा सकता है कि पूज्यपादन भी पाणिनिकी टीका लिखी है। न्यासकार ' जिनेन्द्रबुद्धि ' वास्तमेँ बौद्धभिक्षु थे और वे अपने नामके साथ 'श्री बोधिसत्त्वदेशीयाचार्य ' इस बौद्ध पदवीको लगाते हैं । पूज्यपाद के कनडी चरित लेखकने लिखा हैं कि पाणिनि पूज्यपाद के मामा थे और पाणिनिक अधूरे ग्रन्थको उन्होंने ही पूर्ण किया था: परन्तु इस समय ऐसी बातोंपर विश्वास नहीं किया जा सकता । 'जैनाभिषक ' नामक एक और ग्रन्थका जिकर " जैनेन्द्रं निजशन्दभागमतुलं " आदि लोकर्मे किया गया है । यह श्लोक उपर पृष्ट ६५ में दिया जा चुका है। जहां तक हमारा खयाल है जैनाभिपेक और यंत्रमंत्रविषयक ग्रन्थ भी अन्य किसी पूज्यपाद के बनाये हुए होंगे और भ्रमसे इनके समझ लिये गये होंगे। कनडी पूज्यपादचरितमें पूज्यपादके बनाये हुए अर्हत्पतिष्टालक्षण और शान्त्यष्टक नाम स्तोत्रका भी जिकर है। [ भाग १ सत्यताकी जरा भी परवा न करनेवाले और साम्प्रदायिकता के मोहमें बहनेवाले लेखक किसतरह तिलका ताड बनाते हैं। इस चरितको चन्द्रव्य नामक कविने दुःषम कालके परिधावी संवत्सरकी आश्विन शुक्ल ५, शुक्रवार तुलालन में समाप्त किया है। यह कवि कर्नाटक देशके मंलयनगरकी 'ब्राह्मणगली' का रहनेवाला था । वत्सगोत्री और सूर्यवंशी ब्राह्मण वम्मणाके दो पुत्र हुए सातप्पा हुन्छ ब्रह्मरस और विजयप्पा । विजयप्पा के ब्रह्मरस और ब्रह्मरस के देवप्पा हुआ । इसी देवप्पाकी कुसुमम्मा नामक पुत्रीले कवि चन्द्रय्य का जन्म हुआ था ।. चरितका सारांश यह है : पूज्यपाद - चरित | अन्य बडे बडे आचायोंके समान पूज्यपादके, जीवनसम्वन्धी घटनाओंस भी हम अपरिचित हैं। उनके जानने का कोई साधन भी नहीं है । सि वाय इसके कि वे एक समर्थ आचार्य थे और हमारे उपकार के लिए अनेक ग्रन्थ वनाकर रख गये है, उनका कोई इतिहास नहीं है । आगे हम एक कनड़ी भाषा के पूज्यपाद चरितका सारांश देते हैं, जिससे उन लोगोका मनोरंजन अवश्य होगा, जो अपने प्रत्येक महापुरुपका जीवनचरितचाहे वह कैसा ही हो - पढ़ने के लिए उत्कंठित रहते हूँ । विज्ञान पाठक इससे यह समझ सकेंगे कि "कर्नाटक देशके 'कोले' नामक ग्रामके माधवभट्ट नामक ब्राह्मण और श्रीदेवी ब्राह्मण से पूज्यकपुज्य वतलाया, इस कारण उसका नाम पूज्यपाद पादका जन्म हुआ । ज्योतिषियोंने बालकको त्रिलोरखा गया । माधव भट्टने अपनी स्त्रीके कहने से जैनधर्म स्वीकार करलिया । भट्टजीके सालेका नाम पाणिनि था, उसे भी उन्होंने जैनी बनने को कहा, परन्तु प्रतिष्ठाके खयालसे वह जैनी न होकर मुडीगुंडग्राममें वैष्णव संन्यासी हो गया । पूज्यपादकी कमलिनी नामक छोटी बहिन हुई, वह गुणभट्टको व्याही गई । गुण भट्टको उससे नागार्जुन नामक पुत्र हुआ । पूज्यपादने एक बगीचे में एक सांपके मुंह में फंसे हुए मेडकको देखा। इससे उन्हें वैराग्य हो गया और वे जैन साधु बन गये । पाणिनि अपना व्याकरण रच रहे थे । वह पूरा न होने पाया था कि उन्होंने अपना मरणकाल निकट आया जान लिया। इससे उन्होंने पूज्यपाद से जाकर कहा कि इसे आप पूरा कर दीजिए । उन्होंने पूरा करना स्वीकार कर लिया । पाणिनि दुर्ध्यानदश मरकर सर्प हुए। एक बार उसने पूज्यपादको देखकर फुत्कार किया, इसपर पूज्यपादने कहा, विश्वास रक्खो, मैं तुम्हारे व्याकरणको पूरा कर दूंगा। इसके बाद उन्होंने पाणिनि व्याकरणको पूरा कर दिया।
SR No.010004
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
Publication Year
Total Pages137
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size11 MB
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