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________________ हो, तो उस दिन किया गया नींव का मुहूर्त धन-धान्य देने वाला एवं शुभ होता है। अश्विनी, रोहिणी,, पूर्वाफाल्गुनी, चित्रा और हस्त नक्षत्रों में बुधवार के दिन प्रारंभ किया हुआ घर सुख, संपन्नता और पुत्रों को देने वाला होता है। गुरुः शुक्राक्रचंद्रेषु स्वोच्यादि बलशालिषु । गुर्वकेंदुबलं लब्धवा गृहारंभ प्रशस्यते।। -ज्योतिष तत्व प्रकाश/श्लोक61/ पृष्ठ421 जब गुरु, शुक्र, सूर्य तथा चंद्रमा अपने उच्च स्थान में हों, बलवान हों, तो गुरु, सूर्य तथा चंद्रमा का बल ले कर गृहारंभ करना शुभ फलदायक होता है। नींव प्रारंभ के समय मेष का सूर्य प्रतिष्ठादायक, वृष का सूर्य धन वृद्धिकारक, कर्क का शुभ, सिंह हो तो नौकर-चाकर में वृद्धिकारक, तुला का सूर्य सुखदायक, वृश्चिक में धन वृद्धिकारक, मकर का सूर्य धनदायक तथा कुंभ का सूर्य रत्न लाभ देता है। गृहारंभ में स्थिर या द्विस्वभाव लग्न होना चाहिए, जिसमें शुभ ग्रह बैठे हों, या लग्न पर शुभ ग्रहों की दृष्टि पड़ती हो। महर्षि पाराशर के अनुसार चित्रा, शतभिषा, स्वाति, हस्त, पुष्य पुनर्वसु, रोहिणी, रेवती, मूल, श्रवण, उत्तराफाल्गुनी, धनिष्ठा, उत्तरायण, उत्तराभाद्रपद, अश्विनी, मृगशिरा और अनुराधा नक्षत्रों में जो मनुष्य वास्तु पूजन करता है, उसको लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। वास्तुपूजनमेतेषु नक्षत्रेषु करोति यः। समाप्नोत नरो लक्ष्मीमिति प्राह पराशरः ।। गृह निर्माण काल : कुंडली में गुरु, शुक्र, सूर्य तथा चंद्रमा में से कोई भी तीन ग्रह उच्च के, या स्वगृही हों, दसवें स्थान में बुध हो, लग्न में सूर्य, गुरु, शुक्र, या चंद्र स्वगृही या उच्च हों, तो ऐसे घर की आयु दो सौ वर्ष की होती है तथा उस घर में चिरकाल तक लक्ष्मी का निवास रहता है। निषिद्ध वचन : • रवि और मंगल को गृहारंभ न करें। • मेष, कर्क, तुला और मकर लग्न में गृहारंभ न करें। गृहारंभ काल की कुंडली बनाएं। उसमें तीसरे, छठे और ग्यारहवें स्थान में पाप ग्रह हो, तो गृहारंभ न करें। • गृह कुंडली में छठे, आठवें तथा बारहवें में शुभ ग्रह हो, तो गृहारंभ न करें। • मंगलयुक्त हस्त, पुष्य, रेवती, मघा, पूर्वाषाढ़ा और मूल, इन नक्षत्रों को यदि 89 http://www.Apnihindi.com
SR No.010000
Book TitleSaral Vastu
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages97
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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