SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ है। अतः इनका विशेष ध्यान रखना चाहिए। भारत में हवा के लिए उत्तर दिशा खुली होनी चाहिए। घर में रोशनदान और खिड़कियों द्वारा Cross Ventilation (दोनों ओर से हवा का आना-जाना) की व्यवस्था होनी चाहिए। घर का केंद्रीय भाग खुला होना चाहिए। 3. अग्नितेज : सूर्य ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है। सूर्य से उष्णता प्राप्त होती है। उष्णता अग्नि का एक स्वरूप है। पर्यावरण में व्याप्त वायु, धूलि कण और बादल, अपनी चुंबकीय शक्ति द्वारा, एक दूसरे की ओर आकर्षित होते हैं। इसी लिए आकुंचन यानी, सिमटने की क्रिया घटित होती है। आकुंचन के कारण हवा का दबाव बनता है। इस दबाव के कारण ऊर्जा उत्पन्न होती है, जो अग्नि के रूप में प्रकट होती है। आकाश में चमकने वाली बिजली इसका एक उदाहरण है। इसी लिए आधारभूत तत्व अग्नि का विशेष महत्व है। क्योंकि अग्नि के कारण, शब्द और स्पर्श के अतिरिक्त रूप में एक नया तत्व प्राप्त होता है, इसलिए हमारे दैनिक जीवन में अग्नि का विशेष महत्व है। अग्नि से भोजन पकता है। अग्नि से प्रकाश उत्पन्न होता है। प्रकाश के कारण ही हम देख सकते हैं। शुभ कार्यों में अग्नि का पवित्र स्थान होता है। अग्नि की तरंगों के कारण ही हम ब्रह्मांड स्थित परमपिता परमात्मा को अपनी प्रार्थनाएं भेज पाते हैं (समर्पित करते हैं) अग्नि इतनी सामर्थ्यशाली है। परमात्मा की आरती में भी गूढ़ अर्थ समाविष्ट है। अग्नि में तेजस् (तेज) रूपी विशेष गुण है। इसी लिए अग्नि जीवन का अंतिम एवं चिरंतन सत्य है। सत्य अग्नि की उपलब्धि है। सत्य अविनाशी है। अग्नि की ऊर्जा हमें घर में आने वाले सूर्य के स्वच्छंद प्रकाश से भी प्राप्त होती है। घर में खिड़कियों की ऐसी व्यवस्था हो कि प्रातःकालीन सूर्य की शुद्ध एवं स्वच्छ रश्मियां हमारे घर को अवश्य प्राप्त होनी चाहिएं। इसके लिए घर में खुला आंगन एवं ब्रह्म स्थान चाहिए। 'अति सर्वत्र वर्जयेत्' सूत्र के अनुसार सूर्य का तेज तथा उसकी तीक्ष्ण रश्मियां ज्यादा समय के लिए घर पर नहीं पड़ने चाहिएं। पहाड़ी क्षेत्र में हमने देखा कि पूर्वाभिमुख मकान घर में रहने वालों को परेशान कर देता है, क्योंकि दोपहर तक तपते हुए सूर्य के कारण सारा घर गर्म हो जाता है। अतः आवासीय घर में अग्नि तत्व का सुखद आनुपातिक सम्मिश्रण होना चाहिए। 4. जल: http://www.Apnihindi.com
SR No.010000
Book TitleSaral Vastu
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages97
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy