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________________ में रख कर उनकी पूजा क्यों नहीं की जा सकती ? उत्तर: संसार का कोई भी मनुष्य ईश्वरतुल्य नहीं हो सकता जब जीवित व्यक्ति ईश्वरतुल्य नहीं हो सकता, तो मरने के पश्चात तो वह मिट्टी है। पंच तत्व का यह शरीर पंच तत्व में विलीन हो जाता है । मृतात्मा की पूजा तो प्रेत पूजा हो जाती है। क्योंकि हमारे पूर्वज सदैव हमारे आदर एवं श्रद्धा के प्रतीक हैं, उन्होंने हमें जन्म दिया है इसलिए उनका स्मरण कर, हम उनके प्रति कृतज्ञता का भाव व्यक्त करते हैं। उनके स्मरण और दर्शन से हमें नयी प्रेरणा, ऊर्जा एवं नयी शक्ति की प्राप्ति होती है। कई बार वे देवत्व शक्ति धारण कर, पूर्वज के रूप में, हमारे और हमारे घर की रक्षा करते हैं। अतः निःसंदेह वे पूजनीय हैं। पर सदैव स्मरण रहे कि वे दिवंगत हैं एवं ईश्वर के समतुल्य उनकी पूजा एक दोष में परिणत हो जाएगा, जिसे वे स्वयं स्वीकार नहीं करेंगे। अतः पूर्वजों की तस्वीरें पश्चिम, नैर्ऋत्य, या दक्षिण दिशा में स्थापित कर उनका पूजन किया जा सकता है। कई लोग पनिहारे पर भी सायं काल दीपक नियमित रूप से जलाते हैं। ऐसी अवस्था में यह प्रेत पूजा न हो कर पितृ पूजा, पूर्वजों की पूजा में बदल जाती है, जो व्यक्ति को अनंत ऊर्जा एवं रहस्यमय शक्तियों से परिपूर्ण कर देती है। प्रश्न : कई लोग ईशान में बड़ा चबूतरा बना कर पूजा स्थल बनाते हैं । क्या यह सही है? उत्तर : ईशान में बड़ा चबूतरा बना कर भार डालना गलत होगा। हां, पूजा स्थल सामान्य से ऊंचाई (Raised-plateform) पर होना चाहिए । प्रश्न: क्या पूर्व या ईशान की दीवार में प्रकोष्ठ ( आला) बना कर पूजा स्थल बनाया जा सकता है? उत्तर : अवश्य। पर इस प्रकोष्ठ के ऊपर अन्य वस्तुएं, पछीत, या दूसरा आला (प्रकोष्ठ ) नहीं होने चाहिएं। प्रश्न : हमारी लोहे की अलमारी पूर्व दिशा में रखी है। क्या उसके ऊपरी खंड में पूजा स्थल स्थापित हो सकता है? उत्तर : हां! पर यह चलायमान चंचल पूजा होगी। पूजन कक्ष स्थिर और स्थाई होना चाहिए तथा पूजा समय के अतिरिक्त, उसे हिलाना या छेड़ना गलत होगा । 36 http://www.ApniHindi.com
SR No.010000
Book TitleSaral Vastu
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages97
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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