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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 93 of 583 ISBN # 81-7628-131- 3 v -2010:002 "निःशंक ही सम्यग्दृष्टि" सकलमनेकान्तात्मकमिदमुक्तं वस्तुजातमखिलझै किमु सत्यमसत्यं वा न जातु शंकेति कर्तव्यां 23 अन्वयार्थ : अखिलत्मज्ञैः उक्तं = सर्वज्ञदेव द्वारा कहा हुआं इदम् सकलम् = यह सारा वस्तुजातम् = वस्तुसमूह अनेकान्तात्मकम् = अनेकस्वभावरूपं उक्तं = कहा गया है, सो किमुसत्यम् वा असत्यम् = क्या सत्य है या झूठ है ? शंकेति जातु = ऐसी शंका कदाचित् भी न कर्तव्या = नहीं करनी चाहियें मनीषियो! भगवान महावीर स्वामी की पावन पीयूष देशना हम सभी सुन रहे हैं आचार्य भगवन् अमृतचंद्रस्वामी ने बहुत सुन्दर सूत्र दिया है कि जैसे शरीर में आठ अंग हैं, उनमें से एक भी अंग आपके शरीर में न हो तो आप सर्वांग-सुन्दर नहीं कहलातें ऐसे ही सम्यक्त्व के आठ अंग होते हैं जैसे यदि मंत्र में एक अक्षर कम हो तो विष को दूर नहीं किया जा सकता, ऐसे ही, मुमुक्षु आत्माओ! तुम्हारे सम्यक्त्व के आठ अंग में से एक अंग भी कम है, तो मिथ्यात्व का जहर कम नहीं हो सकतां ध्यान रखना, सर्प के डसे व्यक्ति की तो एक पर्याय ही नष्ट होती है, पर मिथ्यात्व का सेवन करने से अनेक भव नष्ट हो जाते हैं भो ज्ञानी! जब भी कोई तत्त्व-देशना प्रारंभ होती है तो सम्यक्त्व क्यों खड़ा हो जाता है? अथवा जब भी कोई तत्त्व-चर्चा होती है तो मिथ्यात्व को छोड़ने की बात आ जाती हैं क्योंकि आप चाहे गृहस्थ की क्रिया करें अथवा पारमार्थिक क्रिया, अभिप्राय को निर्मल करने की बात तो पहले ही आती हैं अभिप्राय निर्मल नहीं होगा, तो किसी भी संस्था को चला नहीं सकेंगे, चाहे वह गृहस्थ-संस्था हो अथवा साधक- संस्था हों भो ज्ञानी! निर्मलता यानि परिणामों की भद्रता, कषाय की मंदता तथा वस्तु-स्वरूप का यथार्थ प्रतिपादन करने की दृष्टि; वस्तुस्वरूप को समझने की दृष्टिं अतः, जैसा हम अपने लिये समझते हैं, वैसा दूसरों के लिए आप समझने लगो तो आपका अभिप्राय निर्मल कहा जायेगां निर्मलता के लिए संकोच नहीं, विस्तार लाओ, दृष्टि को विस्तृत करों श्रमण संस्कृति कह रही है कि श्रावक भी सम्राट होता है और सम्यक् दृष्टि भी वही होता हैं तत्वश्रद्धान तथा देव, शास्त्र, गुरु के श्रद्धान से पहले अनुकंपा का होना आवश्यक हैं Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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