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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 73 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 v- 2010:002 "निग्रंथ -चर्या अलौकिक वृत्ति" अनुसरतां पदमेतत् करम्बिताचारनित्यनिरभिमुखा एकांतविरतिरूपा भवति मुनीनामलौकिकी वृत्ति: 16 अन्वयार्थः एतत् पदं = इस पद कों अनुसरतां कों करम्बिताचार नित्यनिरभिमुखा = अनुसरण करनेवाले (अर्थात् रत्नत्रय को प्राप्त हुए) मुनीनां पाप-मिश्रित आचार से सदा पराङ्मुखं एकान्तविरतिरूपा = त्यागरूपं अलौकिकी वृत्तिः भवति = लोक से विलक्षण प्रकार की वृत्ति होती हैं मुनियों = सर्वथा = मनीषियो अंतिम तीर्थेश भगवान् महावीर स्वामी के शासन में भगवन् अमृतचन्द्र स्वामी ने बहुत ही सहज सूत्रों का कथन किया कि द्रव्य को नहीं, अभिप्राय को सुधारने की आवश्यकता हैं अभिप्राय निर्मल नहीं होने से मारीचि को आदिनाथ जैसे तीर्थेश भी, भगवान् के रूप में नहीं दिखें अतः, व्यक्तियों में दोष निहारने से पहले अपनी दृष्टि में दोष निहारना बहुत आवश्यक हैं ज्ञानी हमेशा अपनी दृष्टि में दोष खोजते हैं निज की दृष्टि में दोष खोज लोगे तो मोक्ष है और दूसरों के दोषों को खोजकर उनमें सुधार भी करवा दोगे तब भी तुम्हारा मोक्ष नहीं हैं भो चेतन! धोबी की पर्याय में आप कब तक जीते रहोगे ? तूने पर के वस्त्रों को धोया है, परंतु स्वयं की चादर को नहीं निहारा कि मेरी चादर में कितने दाग हैं ? दूसरे के वस्त्रों को तूने सिला है, परंतु अपने वस्त्र पर लगा थिगरा नहीं देखां अहो! जीव को पर का दोष सुमेरू जैसा दिखता है एवं स्वयं के सुमेरू जैसे दोष राइ जैसे भी नहीं दिखतें भो ज्ञानी! माँ जिनवाणी वस्तु को नहीं, दृष्टि को निर्मल करती हैं दृष्टि की निर्मलता ही वस्तु की निर्मलता हैं इसलिए, मनीषियो ! अमृतचन्द्र स्वामी कहते हैं: जिसने मोक्ष को उपादेय माना है, उसकी दृष्टि अलौकिक हैं पंद्रहवीं कारिका में तो यह कह दिया कि यदि अभिप्राय निर्मल नहीं हुआ तो साधु भेष तो प्राप्त हो जाएगा, परंतु संत - स्वभाव प्राप्त नहीं होगा; क्योंकि मोक्षमार्ग साधु – भेष से नहीं, साधु - स्वभाव से बनेगा अतः, भेष 'आधार' है, भाव 'आधेय' हैं अतः, जैसा आधेय है, वैसा आधार हो जाता हैं आधेय तेरा संत – स्वभाव है तो आधार तेरा साधु भेष हैं जब तुम भूल को निकाल कर फेंकोगे, तभी मूलस्वभाव को प्राप्त कर सकोगें Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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