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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 517 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 "सरल बनो, सहज बनो" धर्मःसेव्यः क्षान्तिम॒दुत्वमृजुताच शौचमथ सत्यम् आकिंचन्यं ब्रह्म त्यागश्च तपश्च संयमश्चेति204 अन्वयार्थ : क्षान्तिः मृदुत्वम् = क्षमा, मृदुपना अर्थात् मार्दवं ऋजुता शौचम् =सरलपना अर्थात् आर्जव, शौचं अथ सत्यम् च आकिंचन्यं = पश्चात् सत्य तथा आकिंचनं ब्रह्म = ब्रह्मचर्यं च त्यागः = और त्यागं च तपः = और तपं च = और संयमः = संयम इति धर्मः = इस प्रकार दश प्रकार का धर्म सेव्यः = सेवन करने के योग्य हैं 'वीरों की सम्पदा क्षमा हे योगी! धर्म तो एक ही होता हैं वह है, वस्तु का स्वभावं "वत्थु सहावो धम्मो' जो वस्तु का स्वभाव है, वह धर्म हैं उस धर्म को हम दस प्रकार से जानते हैं यानी कि एक प्रकार से हम धर्म को नहीं समझ सकते, इसीलिए दस भेदों से धर्म की मीमांसा कर समझाया, जो कि आत्मा निजगुण हैं, क्योंकि धर्म-धर्मात्मा के पास ही होता हैं जहाँ धर्मात्मा होंगे, वहीं धर्म होगां दस धर्मों में प्रथम भेद है "उत्तम क्षमा" जिसकी मीमांसा दिगम्बराचार्यों द्वारा बहुत सरल सहज भाशा में की है " कालुश्यानुत्पति क्षमा" अर्थात् कालुश्यता की उत्पत्ति न होना ही क्षमा हैं क्षमा हमारे जीवन का अमृत हैं क्षमाशील जगत् में पूज्य होता हैं क्षमा आत्मा का परम मित्र हैं यदि आत्मा का कोई 'अर' है, तो वह है-क्रोधं क्रोध के आवेश में मानव अपनी मानवता को खो देता हैं क्रोधी की परिणती शराबी-तुल्य होती हैं जैसे: महापापी के नेत्र लाल हो जाते है, शरीर काँपता है, विवेक हो जाता है, क्या करणीय है और क्या अकरणीय-इन सब विचारों से रहित हो जाता है; वही स्थिति क्रोधी व्यक्ति की होती हैं क्रोधावेश में स्वबंधु व मित्रों से भी शत्रुता कर लेता हैं जब कषायावेश शांत हो जाता है, तब पश्चाताप की भट्टी में झुलसता रहता हैं क्रोध ज्ञान-तंतुओं को क्षीण करता है, क्रोधी बुद्धि को क्षीण करता है, यानी क्रोधी की बुद्धि नष्ट हो जाती हैं क्रोधी व्यक्ति के जीवन में जहर घुल जाता है, क्योंकि जहरीला हैं यदि भोजन के समय कोई क्रोध करता है, तो वह भोजन जहर-तुल्य हो जाता हैं क्योंकि क्रोध की उत्पत्ति में शरीर के तंत्र विपरीत करने लगते हैं, रक्तकण विषैले हो जाते हैं, जो मानव जीवन को खतरे में डाल देते हैं यानी रसस्रावी Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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