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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 516 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 समितियों का पालन तो करते जाना और साधु बनने के पूर्व जो श्रावक चर्या का कथन किया है कि उसका विशेष ध्यान रखना भो ज्ञानी! जो चारित्र की प्रवृत्ति में सावधान हो, उसका नाम साधु हैं आहार नहीं लेना राजमार्ग है, आहार लेना अपवाद मार्ग हैं उस अपवाद मार्ग को जो समीचीन रूप से पालन कर रहा हो, उसका नाम साधु हैं मल-मूत्र का क्षेपण अपवाद मार्ग है, उसे समीचीन रूप से जो कर रहा हो, उसका नाम साधु हैं जितना जितना यत्नाचार है, उतना-उतना साधुभाव हैं जहाँ-जहाँ अयत्नाचार है वहाँ- वहाँ असाधुभाव हैं चार हाथ भूमि को निहार कर चलना, कहीं किसी जीव पर पग न पड़ जाये, ऐसा साधु-भाव हैं नमोस्तु शासन कहता है कि घास-फूल को तो तुम छुओ भी मत, क्योंकि हिंसा हो जायेगी जब गमन करें तो वनस्पति से कम-से-कम एक बालिश्त दूर रहें, क्योंकि उसमें नाजुक जीव हैं, तुम्हारे शरीर की उष्ण वर्गणाओं से उनको पीड़ा होगी उन पर पैर रखा तो महापाप हो जायेगां अतः वह दूर से चलते हैं, यह ईर्या-समिति हैं ऐसे स्थान पर गमन नहीं करते जहाँ पर फिसलने की संभावना हो अथवा अप्रासुक भूमि हों सूर्य के प्रकाश में, जहाँ से वाहन आदि निकल चुके हों, लोगों का संचार हो चुका हो, ऐसे मार्ग में ही यति गमन करते हैं मुनिराज प्रासुक भूमि में ही गमन करेंगे, अप्रासुक भूमि में गमन नहीं करेंगें गमनागमन सम्यक् /समीचीन हों देव वंदना, गुरु वंदना, तीर्थ वंदना, स्वाध्याय हेतु अथवा कोई आवश्यक कर्त्तव्य के लिए वे गमन करते हैं व्यर्थ के गमनागमन का उन्हें निषेध हैं ज्ञानी! घूमो, लेकिन निज भाव में घूमना, बाहर घूमने की आवश्यकता नहीं हैं हमारी वाणी मृदु हो, संयमित हो, सीमित हो, हित-मित हो और लाघवभाव से युक्त हों जिनके "वचन मुख चन्द्र” अमृत झरे" वाणी संयम में, प्राणी संयम भी झलकना जरूरी हैं कोई कितना ही प्राणी-संयम का पालक हो, पर वाणी में पत्थर से पटकता हो, तो तुम प्राणी की रक्षा क्या करोगे? तुमने हमारे हृदय को ही विदीर्ण कर दियां ध्यान रखना, प्रत्येक आत्मा में भगवान आत्मा को निहारों हे भगवन! मेरे द्वारा किसी का अन्तःकरण विदीर्ण न हों मर्म भेदी शब्दों का उपयोग मत करो, यह भाषा-समिति हैं छयालीस दोषों को टालकर निर्दोष वृत्ति करना-योगी की एषणा समिति होती हैं सम्यक्-रूप से ग्रहण करना और रखना, यतियों की आदान-निक्षेपण समिति है अर्थात् पिच्छी से मार्जन करके ही स्वीकार करना, पिच्छी से मार्जन करके रखनां पहले पिच्छी चलाने का तरीका सीख लेना, फिर पिच्छी उठाने का प्रयास करना मलमूत्र आदि का क्षेपण निर्जन्तुक एकान्त स्थान में करना व्युत्सर्ग समिति हैं इस प्रकार से यतियों की पाँच समितियाँ होती हैं Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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