SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 510
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 510 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 "षट् आवश्यक व तीन गुप्तियों का स्वरूप" इदमावश्यकषट्कं समतास्तववन्दनाप्रतिक्रमणम् प्रत्याख्यानं वपुषो व्युत्सर्गश्चेति कर्त्तव्यम् 201 अन्वयार्थ : समतास्तववन्दनाप्रतिक्रमणम् = समता, स्तवन, वन्दना, प्रतिक्रमणं प्रत्याख्यानं = प्रत्याख्यान ( आगामी आस्रवों का निरोध) च = औरं वपुषो व्युत्सर्गः = कायोत्सर्ग (शरीर का ममत्व छोड़कर ध्यान करना ) इति इदम् = इस प्रकार यें आवश्यकषट्कं = छह आवश्यकं कर्त्तव्यम् = करना चाहिये सम्यग्दण्डो वपुषः सम्यग्दण्डस्तथा च वचनस्यं मनसः सम्यग्दण्डो गुप्तीनां त्रितयमवगम्यम् 202 अन्वयार्थः वपुषः = शरीर को सम्यग्दण्डः = भले प्रकार अर्थात् शास्त्रोक्त विधि से वश करनां तथा वचनस्य = तथा वचन कां सम्यग्दण्डः च = भले प्रकार अवरोधन करना, औरं मनसः =मन कां सम्यग्दण्ड : = सम्यक्तया निरोधन करनां (इस प्रकार) गुप्तीनां त्रितयम = तीन गुप्तियों कोंअवगम्यम् = जानना चाहिये आचार्य भगवान् अमृतचन्द्र स्वामी ने बहुत ही सहज कथन किया है कि जीवन में आत्मा को उज्ज्वल बनाना है तो अंतरंग व बहिरंग तपों को तपों भो ज्ञानी! यदि तूने निज-पर विवेक नहीं रखा, आत्म बोध नहीं हुआ, तो एक क्षण के कषायभाव पूरी साधना की फसल को नष्ट कर देंगें शुभ परिणाम करोगे तो स्वर्ग आदि जाओगे और अशुभ परिणाम करोगे तो नरक आदि जाओगें शुभ व अशुभ परिणामों से रहित अवस्था जब तुम्हारी बनेगी, तब कहीं तुम सिद्ध बनोगें अतः मुमुक्षु जीव तपस्या करने के लिए तपस्या नहीं करतां भगवान Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy