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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 509 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 घोंसले कान में बन गये; लेकिन प्रभु निज स्वभाव से नहीं डिगें लोक में जितनी पदवियाँ हैं, वे सभी पदवियाँ मोक्षमार्ग में बाधक हैं अंत में ये सब पद छोड़ना पड़ेंगे, तभी सुपद की प्राप्ति होगी व्युत्सर्ग तप कहलाता है निज आत्मस्वभाव की लीनतां स्वयं के अध्याय का अध्ययन जिसमें हो, उसका नाम स्वाध्याय हैं संयम के निर्विकार पालन के लिए और स्व में लीन होने के लिए सुसमय का अध्ययन करना चाहिएं यानि जिन-आगम का ही अध्ययन होना चाहिएं श्रद्धाएँ डिगते देर नहीं लगती, इसलिए प्रारंभ में जिन-आगम का ही अध्ययन होना चाहिएं चित्त के विच्छेद का त्याग हो जाना, इसका नाम ध्यान हैं चित्त की विकल्पता का अभाव जहाँ है उसका नाम ध्यान हैं आचार्य भगवान् कह रहे हैं कि अंतरंग तपों में ध्यान ही तो सबकुछ हैं यदि ध्यान नहीं है तो आप लोग यहाँ आ नहीं सकते थें ध्यान से आना, ध्यान से जानां पर ध्यान में आना और ध्यान में रहना तथा ध्यान रखना आज ध्यान की चर्चा की हैं तीर्थकर देव ने कहा है - अपना पद और अपनी शक्ति को देखकर ध्यान कर लेना चाहिए भो ज्ञानी ! तुम दो कदम तो बढ़ जानां Muktagiri Jain Tirth, Madhya Pradesh, India श्री मुक्तागिरी सिद्ध छेत्र, मध्य प्रदेश Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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