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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 49 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 अरसमरुवमगंधं अव्वत्तं चेदणागुणमसई जाण अलिंगग्गहणं जीवमणिद्दिट्ठसंठाणं54 'समयसार' जी में आचार्य कुंदकुंद स्वामी कह रहे हैं-जब तू निर्विकल्प दशा का वेदन करने की भावना रखता है तो ऐसा चिन्तन कर कि मैं अरस हूँ, अरूपी हूँ , मैं अगंध स्वभावी हूँ , इन्द्रिय गोचर नहीं हूँ मैं अपने आपमें संस्थान से रहित हूँ, मेरा कोई निश्चित संस्थान नहीं है, ये सब कुछ जो दिख रहा है-यह देह धर्म हैं यह देह, धर्म नहीं है और देह धर्म के पीछे ही मैंने देही के धर्म को छोड़ा है, अहो! शरीरों का राग ही तुझे अशरीरी नहीं बनने दे रहा हैं अतः, वृद्धों के साथ रहों जो शरीर सिकुड़ चुके हैं, उन शरीरों के पास बैठों उनके पास बैठोगे तो वासना सिकुड़ जायेगी और फूले-फूले शरीरों के पास बैठोगे तो कामवासनायें फूलेगी, यह प्रकृति का नियम हैं वृद्ध-संगति पर आचार्य शुभचन्द्र स्वामी ने 'ज्ञानार्णव' में एक स्वतंत्र अधिकार लिखा हैं हे साधक! यदि तू निर्मल साधना करके मुक्ति की ओर गमन करना चाहता है तो वृद्धों की संगति कभी मत छोड़ देना, वृद्धों की सेवा मत छोड़ देना, ध्यान रखना, शास्त्रों में तुम्हें शब्दज्ञान तो मिल जायेगा पर अनुभवज्ञान तो वृद्धों के पास ही मिलेगां इसलिए वृद्धों का अविनय कभी मत करना जो ज्ञानवृद्ध हैं, उम्र-वृद्ध हैं, तप-वृद्ध हैं, उन सब वृद्धों का सम्मान रखनां इसके साथ ही कभी किसी की अवहेलना नहीं करना, क्योंकि हमारे आगम में कहा है-चाहे वृद्ध का शरीर हो, चाहे युवा का, चाहे शिशु हो, सबके अंदर भगवती-आत्मा हैं अहो ज्ञानी! वो आज का अहंकार तेरी साधना के विनाश का हेतु बन जायेगां इसलिए सबसे मिलकर चलना, संभलकर जीना और संभलकर चलनां भावों में निर्मलता रखना, मृदुता रखना, तभी तुम उस चिदात्मा को प्राप्त कर सकोगें भो चेतन! अब आचार्यश्री कह रहे हैं-गुणपर्ययसमवेतः एक-एक काल में जैसा गुण होगा, वैसी पर्याय होगी और जैसी पर्याय होगी वैसा द्रव्य होगां बिना द्रव्य के परिणमन किये बिना पर्याय नहीं बदलती हैं इसलिए द्रव्य, गुण, पर्याय एक काल में एक से होते हैं और जब द्रव्य शुद्ध होगा तो गुण व पर्याय भी शुद्ध होगी जो मिट रही है वह पर्याय है, फिर भी नहीं मिट रही है उसका नाम ध्रौव्य हैं मनुष्य-पर्याय में तेरा जीव है तो मनुष्य आकार है, मनुष्य पर्याय-मिटी, देव हो गया तो देवाकार है, परंतु जीव ध्रौव्य है, ध्रौव्य कभी नष्ट नहीं होता भो ज्ञानी! द्रव्य, गुण, पर्याय युगपत ही होते हैं कार्य में तीन-रूपता दिख रही है, परंतु काल की तीन-रूपता फिर भी नहीं हैं जिस समय उत्पाद है उसी समय व्यय है और जिस समय व्यय है, उसी समय ध्रौव्य हैं काल भेद नहीं है, समय भेद नहीं हैं इसलिए ध्रौव्य ही द्रव्य हैं सत्ता कभी असत्ता नहीं बनती हैं सत्ता Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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