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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 473 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 गया कि अपन एक काम करते हैं कि कपड़ा बांध लेते हैं पैरों में, अथवा खड़ाऊँ पहिन लेते हैं यह बीच का विचार आने से आपके मन में जो कमी आ गई, उसमें आपने रूढ़ी निभाई, कि अहिंसा निभाई? अगर उस खड़ाऊँ के नीचे चींटी आ गई, तो चींटी का क्या होगा? चींटी तुम्हारे नंगे पैर के नीचे आ जाये, तो बच सकती है, क्योंकि पैर का तलुआ मुलायम होता हैं इसीलिए परिणाम मुलायम हैं, परिणाम निर्मल हैं, तो प्रत्येक व्रत निर्मल पलेगां सम्यकदर्शन के पाँच अतिचार हैं साक्षात् भगवान खड़े हों, पर जिसका हृदय शंका के रोग से ग्रसित है, जिसकी मानसिकता कलुषित है, वह जीव कहेगा- क्या मालूम यह भगवान सांचे हैं, कि झूठे? आजकल तो कोई सच्चा हो ही नहीं सकता, अब तो भगवान होते ही नही हैं तत्त्व सात हैं पर उनके पास निर्णय नहीं हैं निर्णय के अभाव में आप गृहस्थ-जीवन भी अच्छी तरह से नहीं जी सकते, ये शंका चल रही हैं जिनेन्द्रदेव के वचनों में कभी शंका नहीं करना, यह निशंकित-भाव है और यदि शंका है, तो ये सम्यकदर्शन का पहला अतिचार हैं आपको किसी ने थाली लगा के दे दी, अब वो सोचता है-क्या मालूम इसमें जहर तो नहीं मिला? अब आपका पेट नहीं भरेगा, क्योंकि शंका हो गईं एक सज्जन के यहाँ लीपा-पोती चल रही थीं पत्नि ने लाल मिट्टी लोटे में घोलकर पतिदेव की चारपाई के नीचे रख दी प्रातः के पाँच बजे उनको शौच-क्रिया को जाना था, उसने देखा कि लोटा तो नीचे रखा हैं उठाकर देखा कि पानी भरा हुआ हैं लोटा उठाया और चल दिये शौच क्रिया को और जैसे ही शुद्धि करके हाथ देखा, तो पूरा रंगा हुआ थां पहले तो मूर्छा खाकर वहीं गिर गये थोड़ी देर बाद मूर्छा हटी घर पहुँचे और चारपाई पर पड़े, तो बोले कि आज तो एक लौटा रक्त बह गया, पता नहीं कौन-सा रोग लग गयां वैद्य बोले-सब बढ़िया हैं तभी अचानक पत्नि बोली-अरे, कोई यहाँ से लोटा ले गयां मैंने रात्रि में मिट्टी को घोल कर रखा था उसमें लाल मिट्टी थीं पति हँसने लगा, बोला-रोग ठीक हो गयां क्योंकि उसने लाल मिट्टी के पानी को खून मान लिया था, इसीलिए उन्हें पीड़ा होना प्रारंभ हो गई थी, क्योंकि शंका थी, और शंका का समाधान हो जाये तो सब पीड़ा समाप्त हो जाती जीवन में न तो स्वयं शंकालु बनना, न दूसरे को शंका में डालना, क्योंकि ये सम्यक्त्व का अतिचार हैं कांक्षा दूसरा अतिचार हैं भगवन्! मैं आपकी पूजा कर रहा हूँ प्रभु! मेरी दुकान अच्छी चल जायें भो ज्ञानी ! पुण्य का उदय होगा तो सब काम अच्छे से चलेंगें लेकिन पुण्य का योग नहीं है तो सभी काम बिगड़ेंगें आप जो कर रहे हैं, उसके फल को आपने विफल कर दियां ध्यान रखना, धर्म तो करना, लेकिन धर्म के फल में आकाँक्षा नहीं करना; क्योंकि मिलना उतना ही है, जितना तुम्हारे योग में होगा, परन्तु इतना अवश्य है कि मिथ्यात्व में जरूर चले जाओगें भो ज्ञानी! जब जीव का स्वार्थ निहित होता है, तो उसको धर्म के क्षेत्र में भी ग्लानि आने लगती है, उसके भाव भी बिगड़ते हैं और उल्टा ही सोचता हैं परिणाम होते हैं कि धर्म क्षेत्र से उठकर अन्यत्र चला जायें धर्मात्मा के बीच में एक क्षण भी अच्छा नहीं लगता है, दुष्टों की गोष्ठी में बैठकर प्रसन्नचित्त हो तो ध्यान Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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