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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 457 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 "सल्लेखना आत्मघात नहीं" मरणेऽवश्यं भाविनि कषायसल्लेखनातनुकरणमात्रे रागादिमन्तरेण व्याप्रियमाणस्य नात्मघातोऽस्तिं 171 अन्वयार्थ : अवश्यं = अवश्य ही भाविनी = होनहारं मरणे 'सति = मरण के होते हुएं कषायसल्लेखनातनुकरण मात्रे = कषाय सल्लेखना के कृश करने मात्र व्यापार में व्याप्रियमाणस्स = प्रवर्त्तमान पुरुष के रागादिमन्तरेण = रागादिक भावों के बिना आत्मघातः = आत्मघातं नास्ति = नहीं हैं मनीषियो! अंतिम तीर्थेश वर्द्धमान स्वामी की पावन-पीयूष देशना हम सभी सुन रहे हैं आचार्य भगवन् अमृतचन्द्र स्वामी ने अलौकिक दशा का कथन किया है कि जीव ने अनंत भवों से मरने की कला को नहीं सीखा हैं सल्लेखना पूर्वक मरण ही व्यवस्थित मरण है, क्योंकि मुमुक्षु जीव का जीवन ही व्यवस्थित नहीं होता, वरन् मरण भी व्यवस्थित होता हैं "भगवती आराधना" ग्रंथ में उल्लेख है कि संघ के आचार्य अपनी सल्लेखना प्रारंभ करने के पूर्व संघस्थ ज्येष्ठ साधु को बालाचार्य के रूप में प्रतिष्ठित करते हैं आचार्य ने अभी उन्हें आचार्य पद नहीं सौंपा हैं पूरे संघ को विराजमान कर लेते हैं और विराजमान करने के बाद सारे गण को शिक्षा प्रदान करते हैं पद ही नहीं देते, आचार्य उनको आचार्यत्व का श्रद्धान् भी देते हैं जो श्रद्धाएँ मेरे प्रति थीं आपकी, वह सारी श्रद्धाएँ मेरे नवीन आचार्य के प्रति हो गई योग्य नक्षत्र, योग्य मुहूर्त में चतुर्विध संघ के सान्निध्य में, मनीषियो! वे आचार्य परमेष्ठी अपने सिंहासन से उतर कर, जिनके लिए दीक्षा व शिक्षा दी थी, उनके चरणों में नमोस्तु करेंगें भो ज्ञानी! अहंकार की समाधि हो जाये तो समाधि हो गईं मरण तो हो जाता है, पर जो अंदर का गरूर, अहंकार है, उसकी सल्लेखना पहले कर देना आगम में लिखा है कि पहले कषायों को कृश करो, फिर शरीर को कृश करो, इसका नाम सल्लेखना हैं योग्य नक्षत्र/मुहूर्त को देखकर नवीन बालाचार्य को आचार्य पद पर संस्कारित कर देते हैं फिर कहते हैं-इस सिंहासन पर विराजें आपं अब देखना कि गुरु खड़ा है तो शिष्य कैसे बैठे? नहीं-नहीं, मैंने इतने दिन आप सबको दीक्षा दी है, शिक्षा दी है, आज आपको गुरुदक्षिणा देना हैं यदि इतने विशाल संघ का संचालन करने वाला नहीं होगा, तो साधुओं की चर्या Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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