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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 430 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 भो ज्ञानी! आचार्य महाराज कह रहे हैं "अविरुद्धा अपि भोगा' आप नहीं छोड़ पा रहे हो, तो आप इतना तो कर सकते हो, कि जो शास्त्र के विरुद्ध है, जो संयम के विरुद्ध है, धर्म के विरुद्ध है, ऐसे पदार्थों का सेवन तुम मत करो, उनका तो त्याग ही कर दों जब आपको मालूम है कि इसको खाने से मेरा स्वास्थ्य बिगड़ता है, तो नहीं लेनां वैद्य ने कहा कि बीड़ी नहीं पीना, लेकिन पलंग से उतर कर दूँठ धीरे से उठा ले जाते और पी लेते हों यहाँ लगाना राग की तीव्रतां अहो ज्ञानी! हमारे जैनदर्शन में चार प्रकार का आहार होता है खाद्य, स्वाद्य, लेह्य और पेयं अब बताइये आप लोगों का पूरा पेट भर गया फिर भी लोंग इलायची मुँह में दबाकर आ जाते हैं यानि पेट भर गया, परन्तु रसना की रसना नहीं भरी, वासना नहीं भरीं यदि वासना भर गई होती तो कहते कि भैया, मैंने कायोत्सर्ग पढ़ लिया, अब नहीं खायेंगें भो ज्ञानी! ध्यान रखना, छन्ना शुद्ध लठे का इतना मोटा होना चाहिए जिसमें सूर्य की रोशनी प्रवेश न कर पायें परन्तु थैली छन्ना नहीं हैं नल की टोंटी में थैली लगा दी, अब उसकी बिलछानी कब करेंगे? जिस दिन वह सड़कर टपक जायेगी तो अपने आप ही बिलछानी हो जायेगी और कहते हैं कि छान कर पानी पी रहे हैं देखो, थैली लगी हुई है, जैनी का चिह्न झलक रहा हैं हाँ, जैनी की रूढ़ी झलक रही है, लेकिन जैनी की अहिंसा नहीं झलक रहीं अहो ज्ञानियो! जल गालन की कथा में लिखा है कि जब एक माँ ने पानी छाना, तो एक बूंद बिलछानी जमीन पर गिर गई, जिससे वह सात भव तक सूकरी बनी, सात भव कूकरी बनी, सात भव गधी बनी, सात भव सियारनी बनीं अहो ज्ञानी आत्माओ! उस माँ से भूल हो गई, उसने एक बूंद डाली थी, हम तो पूरा का पूरा फैला देते हैं ओहो! सीधे नल के नीचे टोंटी खोली, बैठ गयें क्या होगा बिलछानी का? भो श्रावको! अब सोचो हम किस स्थान पर हैं ? आज से ध्यान रखना, जिन वस्त्रों का उपयोग तुम पहनने में कर चुके हो, उन वस्त्रों का उपयोग भोजन सामग्री में मत करना और पानी छानने के लिए भी नहीं करनां तौलिया और रुमाल का छना पानी बिना-छना ही है, क्योंकि वो इतना पतला होता है कि उसमें जीव बचते नहीं हैं छन्ना दोहरा होना चाहिए और ठोस होना चाहिएं जीवाणी की बिलछानी नीचे सतह तक भेजो, जीवों की रक्षा होगी अब कहेंगे कि पानी भरते-भरते दो घण्टे लग गये, इतनी देर में हम एक शास्त्र के दस पन्ने पढ़ लेतें ओहो! मैं कैसे चलूँ, मैं कैसे खाऊँ, मैं कैसे बोलूँ, इन सबके लिए ही तो शास्त्र पढ़ा जाता हैं यदि पढ़ लिये और नहीं कर पाये, तो जिनवाणी कहेगी कि आपने कुछ नहीं किया, मेरा उपयोग नहीं कियां ज्ञान तो किया, लेकिन ध्यान नहीं कियां ध्यान रखना, जहाँ अहिंसा अर्थात् जीव-रक्षा होगी, वहाँ शेष रक्षा स्वयं हो जायेगी Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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