SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 407
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 407 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 v- 2010:002 "पूजा करो, पूज्य बनो” अन्वयार्थः विहितसान्ध्यविधिम् = कर ली गई है प्रातः काल और संध्याकालीन सामायिकादि क्रिया जिसमें ऐसें वासरम् = दिन कों धर्मध्यानासक्तः धर्मध्यान में लवलीन होता हुआं अतिवाह्य व्यतीत करके स्वाध्यायजितनिद्रः = पठन-पाठन से निद्रा को जीतता हुआ शुचिसंस्तरे = पवित्र सांथरे परं त्रियामां गमयेत् = रात्रि को पूर्ण करें = धर्मध्यानासक्तो वासरमतिवाह्य विहितसान्ध्यविधिं शुचिसंस्तरे त्रियामां गमयेत्स्वाध्यायजितनिद्रः 154 = = अन्वयार्थ : ततः प्रातः प्रोत्थाय तदुपरान्त प्रभात में ही उठकरं तात्कालिकं = उस समय की क्रियाकल्पम् कों कृत्वा करके प्रासुकैः = प्रासुक अर्थात् जीव-रहितं द्रव्यैः द्रव्यों से यथोक्तं प्रकार कही है उस प्रकार से जिनपूजां = जिनेश्वर देव की पूजा कों निर्वर्तयेत् = करे प्रातः प्रोत्थाय ततः कृत्वा तात्कालिकं क्रियाकल्पम्ं निर्वर्तयेद्यथोक्तं जिनपूजां प्रासुकैर्द्रव्यैः 155 = = = क्रियाओं आर्ष-ग्रंथों में जिस मनीषियो! अंतिम तीर्थेश वर्द्धमान स्वामी की पावन पीयूष देशना हम सभी सुन रहे हैं, आचार्य भगवान् अमृतचंद्रस्वामी ने अनुपम सूत्र दिया है - जीवन में समत्व भाव एक ऐसा अनुपम है जिसके माध्यम से सम्पूर्ण लोक की विषमता समाप्त हो जाती है, क्योंकि लोक में समता को भंग करनेवाला यदि कोई पदार्थ है तो 'मैं' और 'मेरा' भाव हैं यह 'मैं' व 'मेरा समत्व को प्राप्त नहीं होने दे रहा हैं मैं क्या हूँ? मैं जो दिखता हूँ, वह 'मैं' नहीं हूँ अहो! जिसे आप 'मैं' कह रहे हो, वह कभी मेरा है नहीं फिर 'मैं' ही नहीं कहता, 'मेरे' भी कहता हैं मेरा ज्ञान दर्शन है, चारित्र है, सुख है, अनंत चतुष्ट्य है, परंतु 'मैं' के पीछे अपने स्वचतुष्टय पर दृष्टिपात नहीं किया, क्योंकि समता प्राप्ति के उपाय के बीच में "कर्त्ताभाव" आ जाता हैं अहो! विश्व अशांति का मूल Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact: akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy