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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 40 of 583 ISBN # 81-7628-131- 3 v -2010:002 हैं कि आज तक जीव ने निश्चय और व्यवहार शब्दों को सुना हैं निश्चय व व्यवहार के स्वरूप को नहीं समझां भो ज्ञानी! आचार्य अमृतचंद्र स्वामी दोनों नयों को समझा रहे हैं-व्यवहार अभूतार्थ हैं, निश्चय भूतार्थ है, परंतु निश्चय भूतार्थ भी है, अभूतार्थ भी हैं समझना, पड़ोसी किसी भी जाति का क्यों न हो, परंतु उनमें भी आप काका, दादा, चाचा का संबंध बनाकर चलते हो और पड़ोसी के भाई को भाई कहते हों उसका बेटा, वह भतीजा है, परंतु ध्यान रखो, तुम्हारे भाई का बेटा भी तो भतीजा हैं निश्चय, निश्चय ही है, भूतार्थ भी हैं लेकिन जिसने व्यवहार ही को लेकर अपना जीवन प्रारंभ कर दिया है उसके लिये कहना कि अभी थोड़ा रुक जाओं निश्चय-व्यवहार के विवाद हैं निश्चय नय द्रव्यदृष्टि है, द्रव्य नहीं हैं इसलिये जो द्रव्य है वह तो भूतार्थ ही है, द्रव्यदृष्टि भूतार्थ को समझने की दृष्टि है, परंतु द्रव्य निश्चय–व्यवहार दोनों से परे हैं, वो ही तेरी शुद्ध दशा हैं पूर्व गाथा में कहा कि आत्मा नय से अतीत है, वह द्रव्य हैं अनेकान्त कहता है द्रव्य दृष्टि से, द्रव्य शुद्ध हैं द्रव्य, द्रव्य हैं द्रव्य दृष्टि, द्रव्य नहीं हैं अब देखना, सोलह वर्ष का बालक,द्रव्य दृष्टि से पिता है तथा जन्म लेने वाली बालिका,द्रव्य दृष्टि से, माता हैं परंतु जन्म लेने वाला वो बालक द्रव्य से पिता नहीं है और वह बालिका माता भी नहीं हैं स्त्री धर्म उसी दिन से है जिस दिन से जन्मी थी, परंतु माता धर्म तब होगा जब बेटे को जन्म देगीं थोड़ा समझना द्रव्य दृष्टि और द्रव्य कों जब एक इक्कीस वर्ष का युवा होगा और संतान उत्पत्ति की क्षमता से युक्त होगा, तब उसका पुरुषत्व- धर्म प्रगट होगा लेकिन पुरुष उसी दिन से था, जिस दिन जन्मा थां मनीषियो! यह आत्मा जब निगोद में थी तब भी द्रव्य दृष्टि से परमात्मा थी और आज जब मनुष्य के शरीर में है, तब भी परमात्मा है, परंतु द्रव्य से परमात्मा तभी होगी जब अष्ट-कर्म से रहित होगी और जिसने द्रव्य दृष्टि को ही द्रव्य परमात्मा मान लिया है वह मिथ्यादृष्टि ही हैं जिसने द्रव्य को द्रव्य माना और दृष्टि को दृष्टि माना, वो ही बनने वाला शुद्ध भगवान् हैं भो ज्ञानी! दृष्टि समझने का ही विषय हैं दृष्टि वस्तु नहीं हैं दृष्टि, दृष्टि है और सम्यकपना भिन्न हैं जो नयदृष्टि को मानता है, वह सम्यकदृष्टि हैं जो नयदृष्टि को नहीं मानता हैं, वह दोनों आँखों से युक्त होने पर भी दृष्टिहीन हैं पुनः समझना, द्रव्य से द्रव्य है, पर्याय से पर्याय हैं गुण से गुण हैं परंतु द्रव्य, पर्याय, गुण से रहित कोई द्रव्य ही नहीं हैं क्योंकि आगम में तीन बातें ही हैं- द्रव्य, गुण, पर्यायं द्रव्य मतलब वस्तुं ये पेन दिख रहा है आपको? पेन मत कहना, पुद्गल कहना इसकी संज्ञा पेन हैं भो ज्ञानी! पुद्गल-द्रव्य की पर्याय पेन हैं स्पर्श, रस, गंध, वर्ण यह गुण हैं इसमें से रस को अलग कर दो, पेन-पर्याय को अलग कर दो, पेन द्रव्य को अलग कर दो, तो क्या बचेगा? भो ज्ञानी! जहाँ द्रव्य होगा वहाँ नियम से पर्याय होगी जहाँ पर्याय होगी, वहाँ नियम से द्रव्य होगां दोनों परस्पर में कभी पृथक-पृथक नहीं होते हैं और लोक व्यवहार कहेगा ये मेरा पेन हैं Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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