SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 397
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 397 of 583 ISBN # 81-7628-131- 3 v-2010:002 "गुणों का स्थान है सामायिक" रजनीदिनयोरन्ते तदवश्यं भावनीयमविचलितम् इतरत्र पुनः समये न कृतं दोषाय तद्गुणाय कृतम् 149 अन्वयार्थ :तत् = वह ( सामायिक ) रजनीदिनयोः = रात्रि और दिन के अन्ते अविचलितम् = अन्त में एकाग्रता-पूर्वक अवश्यं भावनीयं = अवश्य ही करना चाहिएं पुनः इतरत्र समये = फिर यदि अन्य समय में कृतं तत्कृतं = किया जावे तो ( वह सामायिक) कार्य दोषाय न, गुणाय = दोष के हेतु नहीं, किन्तु गुण के लिए ही होता हैं सामायिकाश्रितानां समस्तसावद्ययोगपरिहारात् भवति महाव्रतमेषामुदयेऽपि चरित्रमोहस्यं 150 अन्वयार्थ :एषाम् = इनं सामायिकाश्रितानां = सामायिक-दशा को प्राप्त हुए श्रावकों के चरित्रमोहस्य = चारित्रमोह के उदये अपि = उदय होते भी समस्तसावधयोगपरिहारात् = समस्त पाप के योगों के त्याग सें महाव्रतम् भवति = महाव्रत होता हैं भो मनीषियो! अंतिम तीर्थेश वर्द्धमान स्वामी के शासन में हम सभी विराजते हैं आचार्य भगवान अमृतचन्द्र स्वामी ने सूत्र दिया है कि जो वीतराग-संज्ञा को प्राप्त कर चुके हैं, जो सर्वज्ञता को प्राप्त कर चुके हैं, वह किसी को उपदेश देने नहीं आते, उनके तो सहज उपदेश होता हैं उस सहज उपदेश की प्राप्ति के लिए यदि सामायिक है, तो ध्यान रखना, सबकुछ हैं अर्थात् जीवन के बारे में जो कुछ सोचने का एक समय निर्धारित होता है, उसका नाम सामायिक हैं अपने बारे में विचार करने का जो समय होता है, उसका नाम सामायिक हैं अपने से मिलने का जो समय होता है, उसका नाम सामायिक हैं ध्यान से समझना, एक टोकनी में मेढ़कों को शांति से बिठा के रखना सुरक्षा से, और कह देना कि शांति से बैठनां भो ज्ञानी! जब तक तू एक को सम्हालता है तब तक दूसरा भाग जाता हैं अहो! यह तेरे संबंधों की दशा हैं इन संबंधों को मत Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy