SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 396
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 396 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 v- 2010:002 मना मत करना वह व्यक्ति सम्मेद शिखर - जैसी शाश्वत भूमि में वंदना के लिए नहीं घूम रहा, बल्कि घर के लोग परेशान थे इसलिए वहाँ छोड़ रखा हैं एक नौकर भी साथ में लगा हैं पुण्य की महिमा तो देखो कि एक मैनेजर साथ में लगा हैं जहाँ भी, जो कुछ भी माँगता है, उसे हर व्यक्ति दे देता हैं उसके पिताजी ने मरने के पहले उसके नाम पर बैंक में जो रुपया जमा कर दिया है था, उसका जो ब्याज आ रहा है, वह उसके उपयोग में जा रहा हैं लेकिन पुण्य को तो देखो, तीर्थभूमि में पड़ा हुआ है, यह पहला पुण्यं दूसरा पुण्य कि नौकर सेवा कर रहे हैं इस पुण्य के लिए घोर - घोर तपस्या की है और तीव्र मोह के आवेश में आकर भक्तों व श्रावकों से दूर रहकर मदिरापान कर रहा हैं करोड़पति आदमी है, लेकिन दशा देखो परिणामों कीं इसीलिए ज्यादा कमाकर मत रखना, बर्बाद दूसरा करेगा और बदनाम आप होंगे कि उनकी संतान ऐसा कर रही हैं सम्पूर्ण द्रव्यों में समता का आलंबन करके, जो तत्त्व की उपलब्धि का मूल है, उसका नाम 'सामायिक' हैं इसलिए अनेक बार 'सामायिक' करना चाहिए यूरोप, इंग्लॅण्ड, मिडडलेसेक्स स्थित श्री महावीर स्वामी जिन मंदिर Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy