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________________ अन्वयार्थः पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 379 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 v- 2010:002 'न करो अशुभ चिंतन, अशुभोपदेश पापर्द्धिजयपराजयङ्गरपरदारगमनचौर्याद्याः न कदाचनापि चिन्त्याः पापफलं केवलं यस्मात्ं 141 क्योंकि इन पापर्द्धि-जय-पराजयसङ्गर शिकार, जय, पराजय, युद्धं परदारगमन = परस्त्री - गमनं चौर्याद्याः = चोरी आदिकां कदाचनापि = किसी समय में भीं न चिन्त्याः = चिन्तवन नहीं करना चाहियें यस्मात् अपध्यानों का केवलं पापफलं = केवल पाप ही फल है। = विद्यावाणिज्यमषीकृषिसेवाशिल्पजीविनां पुंसां पापोपदेशदानं कदाचिदपि नैव वक्तव्यम् 142 = अन्वयार्थः विद्यावाणिज्यमषी = विद्या, व्यापार, लेखनकलां कृषि सेवा = खेती, नौकरी औरं शिल्पजीविनां = कारीगरी की जीविका करने वालें पुंसाम् = पुरुषों कों पापोपदेशदानं = पाप का उपदेश मिले ऐसा वचनं कदाचित् अपि किसी समय भीं नैव वक्तव्यम् = नहीं बोलना चाहिएं = भो मनीषियो ! अंतिम तीर्थेश भगवान महावीर स्वामी के शासन में हम सभी विराजते हैं अमृतचंद्रस्वामी ने संकेत दिया है कि मति विमल है तो श्रुति भी तेरी निर्मल हैं मति निर्मल नहीं है, तो श्रुति निर्मल नहीं हो सकती है; क्योंकि सम्यकदृष्टि जीव की मति निर्मल होती है और श्रुति भी निर्मल होती हैं कितना ही श्रुत - अध्ययन कर लिया हो, जब तक दृष्टि निर्मल नहीं है, तब तक मति निर्मल नहीं और जिसकी मति निर्मल नहीं, उसकी श्रुति भी निर्मल नहीं इसलिए आचार्य भगवान् ने कहा है कि अहिंसा का आश्रय लो और Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact: akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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