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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 378 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 साधना हैं आप यदि साधकों के मित्र बनो तो उनको यही कहना कि तुम्हारा काल सामायिक का है, तुम्हारा काल प्रतिक्रमण का है, स्वाध्याय का हैं जब उसका परीक्षाफल आएगा, तो केवलज्ञान के रूप में चमकेगा और कहीं आपने बातों में लगा लिया, तो नरक-निगोद के शून्य आ जाएँगें यदि वर्तमान का पुण्य है, तो सम्राट बन सकता हैं पर ख्याति का नाम तपस्या नहीं, तपस्या में ख्याति हो सकती हैं भो ज्ञानी! तत्त्वज्ञान और तत्त्वदृष्टि में इतना ही अंतर है कि तत्त्वदृष्टि में मोक्ष झलकता है, जबकि तत्त्वज्ञान में ख्याति भी झलक सकती हैं ज्ञानी को झुंझलाहट आ जाती है और तत्त्वज्ञ साम्य- सौम्य होता हैं तत्त्वदृष्टि यानि एकांत में जाकर बैठ जानां तत्त्वज्ञान तो ऐसा रहस्यमय होता है कि जो भावनात्मक दृष्टि बना दें अतः, साम्य/शांत होकर वस्तु की जानकारी लेना तत्त्वज्ञान है और वस्तु को जान लेना तत्त्वदृष्टि हैं सात तत्त्व का ज्ञान तत्त्वज्ञान हैं तत्त्वों को जानने के बाद माध्यस्थ्य भाव का आना तत्त्वदृष्टि हैं जिसकी तत्त्वदृष्टि बन जाती है, उसकी शत्रुदृष्टि और मित्रदृष्टि दोनों समाप्त हो जाती हैं तत्त्वदृष्टि वाले को मोड़ना बहुत कठिन हैं जिसको मुक्तिवधू से शादी करना है, उसको फिर मोड़ नहीं सकतें श्रीकृष्ण, वासुदेव, बलभद्र, समुद्रविजय-जैसे कुटुम्बी नेमिनाथ को मोड़ नहीं पाए, क्योंकि तत्त्वनिर्णयपूर्वक तत्त्वदृष्टि बन चुकी थीं __ अहो मनीषियो! तालाब में शैवाल (काई ) छाया हुआ है, एक बूंद पानी नहीं दिख रहा है, पर विश्वास है कि सैवाल तभी हो सकती है जब उसमें पानी होगां इसका नाम तो तत्त्व-ज्ञान हैं किसान ने उसे दोनों हाथों से हटाया-यह भेद-विज्ञान हो गया और पी लेता है तो यह तत्त्व-दृष्टि में निबद्ध हो गया, तत्त्व दृष्टि ऐसी करनी पड़ती हैं अमृतचंन्द्र स्वामी कह रहे है कि तत्त्व-दृष्टि बनाकर अपने शील में लीन हो जाओं मनीषियों! जब तक जिनवाणी सुनी जा रही है, तब तक जैन-शासन रहेगा और जिस दिन जिनवाणी सुनना बंद हो जायेगी, उस दिन इस भरतक्षेत्र में जिन-शासन समाप्त हो जाएगां इसलिए, लाख काम छोड़ देना, पर जिनवाणी सुनना बंद मत करनां धर्म की वास्तविकता को समझों महाराजश्री के प्रवचन सुनते समय मन में कोई अच्छी बात गूंज रही थी, तभी फोन गूंज गया और उठकर बाहर चले गयें इतने में हार्टअटेक हो गया और मर गया, यानि मरते समय जिनवाणी सुनते-सुनते बाहर चला गया, जबकि गुरु के चरणों में बैठा थां यहाँ निर्विकल्प रहने की कला सिखा रहे हैं। भो ज्ञानी! दिग्वत जीवन-पर्यन्त के लिए होता है और दिग्व्रत की सीमा में और भी जो सीमा की जाती है उसका नाम देशव्रत हैं आज इतने गाँव तक जाएँगे, उसके आगे नहीं जाएँगें वृत्ति परिसंख्यान इतनी पंक्ति में कोई पड़गाहन करेगा तो आहार लेंगे, अन्यथा आगे नहीं जाएँगें तो उनकी यह सीमा हो गयी और हो गया देशव्रतं इस प्रकार का जो व्रत होता है, वह देशव्रत कहलाता हैं यहाँ गमन का त्याग करना इसप्रकार से बहुदेश का त्याग जब हो जाता है तो जिस क्षेत्र में कोई हिंसक कृत्य हो रहा है उस क्षेत्र में खड़े भी मत होना Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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