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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 358 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 सेठजी ने भोजन रखा, उसने नहीं खाया और गिर गयां सेठजी बोले-हाय! यह क्या हो गया? मेरा तोता मर गया, अब इसको पिंजरे में न रखें जैसे ही सेठजी ने पिंजरा खोलकर पक्षी तोते को निकाल कर बाहर रखा, वैसे ही तोता उड़कर डाली पर बैठकर कहता है-सेठजी! गुरुदेव ने यही तो उपदेश दिया थां देखो, मैंने एक दिन का त्याग किया तो मैं आपके बंधन (पिंजरे) से मुक्त हो गयां हे ज्ञानी मुमुक्षु आत्माओ! तुम भी त्याग कर दोगे तो इस पिंजरे से मुक्त हो जाओगें अहो! ज्ञान किया, पर ज्ञान से मुक्ति तो नहीं मिली ज्ञान तो त्याग के लिये किया था और त्याग किया तो मुक्ति मिल गईं ऐसे ही ज्ञान से मुक्ति नहीं मिलेगी, मुक्ति तो त्याग से ही मिलेगी भो ज्ञानी! छठवेंकाल में पछताने को भी नहीं मिलेगां अभी तो कम से कम आप पश्चाताप कर लेते हों ऐसा भी काल आयेगा जिसमें इतनी प्रज्ञा ही नहीं होगी कि हम पाप को पाप समझ पायें यह तुम्हारे पुण्य का उदय है कि पाप को पाप समझ रहे हों यह बात आपको अजीब सी लग रही होगी, लेकिन यथार्थ समझनां पाप को पाप वही समझ पाता है जिसका पुण्य का उदय होता है, अन्यथा पाप को पाप नहीं समझ पाता है, समझाने वाले भले ही समझाते रहें देखो, जब रावण के पाप का उदय आया, कितना बड़ा विद्वान था, इतने लोगों के समझाने पर भी क्या उसकी समझ में आया ? जिसके ऊपर प्रबल पाप छाया होता है, उसे जिन-देशना भी सुहाती नहीं हैं "सर्प डसे तो जानिये रुचि सों नीम चबाये और कर्म डसे तो जानिये जिनवाणी ना सुहायें धर्मसभा में नींद आ जाती है, यह तीव्र अशुभ-कर्म का उदय हैं अहो! भोगों में नींद नहीं आती, यह सब अशुभ-कर्म का उदय हैं इसलिये भगवान् अमृतचंद्र स्वामी कह रहे हैं कि अब तुम परिग्रह का विसर्जन कर दो, निद्रा को भंग कर दों बहुत सो लिया है, अब मोह की नींद से जाग जाओ, अन्यथा संध्या होनेवाली हैं भो ज्ञानी! आचार्य भगवन् एक बार पुनः करुणा दृष्टि से समझा रहे हैं जो बहिरंग-परिग्रह है, उसको भी पूर्ण रूप से छोड़ देना चाहिये, क्योंकि इस परिग्रह से अपरिमित असंयम होता हैं आपको मालूम ह गोदाम में धान्य रख दिया, कीड़े पड़ चुके हैं, बाहर निकलते भी दिख रहे हैं, अब बताओ क्या करोगे ? ऐसे ही बेच रहे हैं अथवा जाकर के पिसवा रहे हैं? परिणाम का ध्यान रखना अब सोचो, कि जैन दर्शन के अनुसार जीना चाहते हो तो विवेक रखो, अन्यथा अपरिमित असंयम होता हैं अहो ! इतने महान संयम पर चलने वाला जैन शासन हैं भगवन् अमृतचंद्र स्वामी कह रहे हैं कि कम से कम इतना तो विवेक रख लेना कि साक्षात् जीवों को पीसकर तो मत खानां जो सम्पूर्ण परिग्रह को छोड़ने में समर्थ नहीं हैं, उन्हें परिग्रह को कम कर लेना चाहिये, परिमाण कर लेना चाहिये; क्योंकि त्याग वस्तु का स्वरूप है, ग्रहण करना वस्तु का स्वरूप नहीं हैं Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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