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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 309 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 माँ ही बच्चों को चोरी करना सिखाती हैं पतिदेव ऑफिस से घर में आये, कपड़ा टाँगे और उन्होंने धीरे से सौ रुपए का नोट निकाल लियां वह बच्चे देख लेते हैं कि जब माँ ऐसा कर सकती है, तो हमें करने में क्या है ? यह मत सोचना कि दूसरे के घर में चोरी करें तो ही चोरी हैं अपने घर में भी यह चोरी हैं अहो ज्ञानियो! देखो, एक साधु दूसरे साधु के कमण्डल के पानी का उपयोग नहीं करते, कोई ग्रंथ चाहिए तो पूछते हैं अचानक कभी पानी की आवश्यकता भी पड़ जाये तो उनको कहेंगे कि आपके कमण्डल का पानी ले रहे हैं, क्योंकि उनका अचौर्य महाव्रत हैं चरणानुयोग कह रहा है कि जब आचरण तुम्हारा निर्मल होगा, तो करण तुम्हारा निर्मल होगां यदि आचरण तुम्हारा निर्मल नहीं है, तो करण भी तुम्हारा निर्मल नहीं होगां करण यानि परिणामं करण की पवित्रता के लिये ही आचरण होता हैं यदि धोखे से अज्ञानता में भूल हो भी गई हो तो उसे छोड़ देना और प्रायश्चित कर लेना आचार्य अमृतचंद्र स्वामी कह रहे हैं- चोरी करने वाला हिंसक ही है, सभी पाप उसके पास हैं, वह झूठ भी बोलता है, परिग्रह का संचय करता है, वह कुशील सेवी है, चोरी कर ही रहा हैं भो ज्ञानी! उसके पास हिंसा भी दौड़ रही है और पांचों पाप चोर के सामने खड़े हुये हैं जो दूसरे के धन का हरण करता है, वह दूसरे के प्राणों का हरण करता हैं यदि आप अहिंसक हो तो भीख माँग कर खा लेना, पानी पीकर सो जाना, नहीं मिले तो णमोकार पढ़कर समाधि ले लेना, लेकिन दूसरे के द्रव्य का हरण नहीं करनां दूसरे के द्रव्य का हरण उसके प्राणों के हरण-तुल्य रहता हैं यह तो तभी पता चलता है, जब स्वयं का गुम जाएं चैन नहीं पड़ता, भगवान् का पूजन-भजन सब छूट जाता हैं एक सज्जन पूजा कर रहे थे और धोती बदलते समय उन्होंने सोने की चैन वाली घड़ी उतार कर रख दी वह कोई उठा ले गया तो चिल्लाने लगे, बोले-हमें नहीं करनी पूजनं इसलिये ध्यान रखना, दूसरे का धन अपने-जैसा ही समझना हाँ, आपके मित्र की चैन गिर गयी थी तो आप उठा लेना और उसको जाकर दे देना, यह चोरी नहीं हैं चोरी के परिणामों से अथवा अपने घर में रखने की दृष्टि से जो भी उठाते हो, वह चोरी हैं अतः दूसरे के द्रव्य को संग्रह करना चोरी हैं बिना दिये किसी की वस्तु को स्वीकार करना/लेना, चोरी हैं भो ज्ञानी! ऐसे भी लोग मिलेंगे जिनकी स्वयं की दुकानें किराये पर हैं, परंतु मंदिर की दुकानों में पचास या पच्चीस रुपए लग रहे हैं, उसमें अपना काम चला रहे हैं अरे! जब कर्म का विपाक सामने आयेगा तब मालूम चलेगां स्वयं के घर हैं, बड़ी-बड़ी हवेलियाँ हैं, लेकिन दूसरे का मिल गया तो क्यों छोड़ो ? अहो! जमाना देखो कि किराये पर जिसने दिया वह उल्टे पैसा दे रहा है कि भैया! खाली कर दों भो ज्ञानी! ऐसे काम करना भी चोरी हैं यदि मंदिर के द्रव्य से पूजा करते हो तो आपको उतनी द्रव्य वहाँ रखनी चाहिये, क्योंकि पर-द्रव्य से भगवान् की पूजन नहीं होती हैं इसलिए जितना सुना है उसको अपने जीवन में ग्रहण करनां Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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