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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 286 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 भो ज्ञानी! तीर्थंकर की वंदना कर रहा है कि कर्म का बंध कर रहा हैं अहो! चर्मचक्षु से वंदना चल रही है, और केवल-चक्षु में बंध दिख रहा हैं बस इतना ही अंतर होता है आपकी चिति-शक्ति में और केवली की चिति-शक्ति में उनके ज्ञान में तुम्हारा छल भी झलक रहा हैं यहाँ चिति-शक्ति को चैतन्य पहचान नहीं सकां अहो! निज के प्रभु को पहचान लेना, संभाल लेना और समझ लेना, क्योंकि इससे बड़ा विवेक और कोई नहीं होतां देखो, जैसे निग्रंथ योगी को स्वानुभव में आनंद आता है, ऐसे ही रागी को परिग्रह के अनुभव में आनंद आता हैं भो ज्ञानी! आपके स्वभाव में ऋजुता है, परिणामों में कोमलता है, व्यक्ति को व्यक्ति मानते हो, किसी पर कटाक्ष नहीं करते हो, किसी को हीन नहीं मानते हो और अल्प आरम्भ-परिग्रह में संतुष्ट हो, यदि ऐसे परिणाम हैं कि जितना आ रहा है उतने में संतुष्ट हैं, हाय-हाय नहीं करते, तो ठीक हैं यदि मृदु-परिणाम हैं, तो सम्यकदर्शन को कोई टालनेवाला नहीं हैं यदि आपने बंध नहीं किया तो नियम से देव ही होंगे और यदि मनुष्य, तिर्यंच आदि आयु का बंध कर लिया हो, तो पक्का है कि आप भोगभूमि में जाओगे, कोई नहीं टाल सकतां शीतल पानी में ही चेहरा दिखता है, उबलते पानी में कभी भी चेहरा नहीं दिखेगां भो ज्ञानी! इसलिये धवलाजी में आचार्य वीरसेन स्वामी ने लिखा है कि अतिहर्षातिरेक में सिद्धांत-ग्रंथों का अध्ययन नहीं करें, दुःख में भी न करें, पर्व आदि के दिनों में भी नहीं करें इन दिनों में निषेध हैं इन दिनों में भक्ति करो, आराधना करो, साधना करो; लेकिन रहस्य/सिद्धांत ग्रंथों का स्वाध्याय नहीं करना, क्योंकि समझ में नहीं आयेंगें जब तेरी चारों कषायें शान्त हो जायेंगी तब वह चिति-शक्ति, जिसकी तू चर्चा कर रहा है, वह शुद्ध चेतना-शक्ति के रूप में प्रकट हो जायेगी आचार्य भगवान् अमृतचन्द्र स्वामी कह रहे हैं कि यदि चिति-शक्ति को समझ लिया है, तो वही सत्य हैं जिसने चैतन्य-शक्ति को नहीं समझा, वही तो असत्य हैं अतः निज-विवेक ही सत्य हैं जैसा वस्तु का स्वरूप है वैसा कहना, यह विवेकसत्य है अन्यथा उद्रेक है, विवेक नहीं हैं __ भो ज्ञानी! विवेक में उद्रेक नहीं होता हैं विवेक आपका काम कर रहा है कि कर्म का बंध कैसे-कैसे होता है? कहाँ-कहाँ होता है? कैसी-कैसी परिणति पर होता है? कैसी-कैसी क्रिया पर होता है? यहाँ पर चिति-शक्ति लगाओ तो एक ही निर्णय निकलेगा कि जो हम कर रहे हैं वह सब मिथ्या हैं तो फिर सम्यक करो और सम्यक् तो महाव्रत-अणुव्रत या ही हो सकते हैं अहो! अणुव्रत या महाव्रत के अभाव में विवेक की बात करना तो 'कहना' भर हैं अणुव्रती से कहा जा रहा है कि पानी छानकर पियो और वह बाजार में जाकर मिठाई खाए, तो कहाँ गई चिति-शक्ति? विवेक का तात्पर्य यह नहीं है कि हम बुद्धि के मात्र व्यायाम करते रहें अरे! विवेक तो हमारी हर परिणति में दिखना चाहिये, झलकना चाहिये जब तुम फर्श अथवा चटाई पर Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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