SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 285
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 285 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 भो ज्ञानी! चिति-शक्ति कहती है कि यह आत्मा चाहे निगोद-पात्र में हो, चाहे नरक-पात्र में, चाहे तिर्यंच-पात्र में, चाहे मनुष्य-पात्र में यदि बर्तनों को देखोगे तो भेद नजर आएगा और नीर को देखोगे तो अभेद नजर आएगां आपने बर्तनों को देखा है, पानी को नहीं देखां यदि हम अवगाहना देखेंगे तो आदिनाथ स्वामी पाँच सौ धनुष के दिखेंगे, महावीर स्वामी सात हाथ के दिखेंगें यदि तुम वंशों को देखोगे तो इच्छवाकुवंश दिखेगा, नाथवंश दिखेगा, हरिवंश दिखेगां जब आप नगर देखोगे तो अवधपुरी दिखेगी, सिंहपुरी दिखेगी, बनारस दिखेगा और सौरीपुर नजर आयेगां पता नहीं क्या-क्या दिखेगा? लेकिन तीर्थंकर नजर नहीं आयेंगे, क्योंकि आपने नगरों को देखा, आपने भवनों को देखां 'समयसार की चिति-शक्ति आपसे कह रही है कि चैतन्य भगवान् तीर्थंकर को देखो तो आपको भगवान् नजर आयेंगे, अवगाहना नजर नहीं आयेगी जो चैतन्य शक्ति सवा पाँच सौ धनुष की अवगाहना में है, वही साढ़े तीन हाथ की अवगाहना में भी हैं अहो मानव! तू तो विवेकी हैं एक बालक जब विवेकशील हो जाता है तो वह प्रज्ञा का उपयोग करना प्रारंभ कर देता हैं यदि प्रज्ञा का समीचीन उपयोग कर लिया, तो परमात्मा बना देगी और असमीचीन उपयोग कर लिया, तो प्रज्ञा ही तुझे नरक भेज देगी नगर में दिन के दस बजे मुनिराज पधारे, अब विवेक लगाओ कि पहले इन्हें आहार करायें, कि इनकी परीक्षा करें? अहो! विवेकशील परीक्षा के लिये समय नहीं खोजता, वह तो चर्या में ही परीक्षा कर लेता हैं भो ज्ञानी! वहाँ तो आप चर्या करानां चिति-शक्ति कहती है कि हमने आपको सूत्र दे दिया कि चिति का उपयोग करों जिसने चिति की इति कर दी, वह कभी चैतन्य को प्राप्त नहीं कर सकेगां अतः चिति की इति मत कर देनां आज विवेक से निर्णय करना कि मुझे किस मार्ग पर चलना है? भो ज्ञानी! मान लो आपके परिणाम साग खरीदने के हो रहे हैं, वहाँ चिति-शक्ति काम करायेगी जब साग खरीद रहा था, उस समय चिति-शक्ति कहती है कि तुम हर समय मुझे लगाओं ज्ञान मेरा स्वभाव है, वह किसी को मारने या गिराने के लिये नहीं, प्राणीमात्र को मिथ्या मार्ग से सन्मार्ग पर लाने के लिये हैं जब साग खरीदते हो, तो साग उठाकर सोचते हो कि बढ़िया-बढ़िया छाँट लूँ और विक्रेता सोच रहा है कि बीच में कुछ खराब भी रख दूँ अहो! कर्म सिद्धांत कहता है कि केवली भगवान् जान रहे हैं, परन्तु उसमें वे आप जैसी चिंता नहीं कर रहे हैं क्योंकि उनका ज्ञान क्षायोपशनिक नहीं, क्षायिक हैं देखो, भाजी खरीदते-खरीदते हमने मायाचारी कर ली, कहाँ गई थी चिति-शक्ति? भगवान् की पूजा करने आया, भाग्य से एक थाली पर दो पुजारी फंस गएं यह द्रव्य ज्यादा चढ़ा रहे हैं, हम भी ज्यादा चढ़ा दें भाग्य से थाली में दो बादामें थीं, पूजा भी दो थीं मैं चाहता हूँ कि दोनों पूजाओं में फल पर बादाम ही चढ़ायें अतः जब तक उन्होंने भगवान् को नमस्कार किया, मैंने धीरे से अपनी द्रव्य में एक बादाम छुपा डालीं Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy