SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 280
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 280 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 जो मेरा सत् है, जो मेरी सत्ता है, वह कभी असत्ता नहीं होती हैं सत्ता त्रैकालिक होती है और असत्ता तात्कालिक होती हैं द्रव्य त्रैकालिक होता है, पर्याय तात्कालिक होती हैं अहो मुमुक्षु! किसी जीव की विकारी-पर्याय को देखकर तुम उसे विकारी-द्रव्य ही मत मान बैठनां किसी से ग्लानि मत करना, किसी को हीन मत माननां जो निगोद में विराजा है और जो सिद्धालय में विराजा है, वे सब जीवतत्व हैं माँ जिनवाणी कह रही है कि तुम किसी की जीवत्व- शक्ति का विनाश नहीं करा सकतें रिश्ते पर्याय के होते हैं, उपयोग पर्यायी का होता हैं अहो! रिश्तों के मिलने-बिछुड़ने पर ज्ञानी खिन्न नहीं होतां जब इष्ट का वियोग होता है, तो अज्ञानी रोता है और जब अनिष्ट का संयोग होता है तो अज्ञानी रोता है, पीड़ा होती हैं ज्ञानी यह सबकुछ होने पर कहता है-यदि नहीं होगा, तो हम संसारी कैसे कहलाएँगे? दुःख भी होगा, सुख भी होगा; सम्मान भी होगा, अपमान भी होगां जब हम सम्मान को सहन करने की शक्ति रखते हैं तो अपमान को भी सहन करने की शक्ति रखना चाहिएं चन्द्रमा ही बढ़ता है, चन्द्रमा ही घटता हैं मनीषियो! तारे न कभी बढ़ते हैं, न कभी घटते हैं महापुरुषों के ही सम्मान होते हैं और महापुरुषों पर ही उपसर्ग होते हैं यह तो सबकुछ होता ही हैं द्रव्य नानारूपता को प्राप्त होता है, क्योंकि पर्याय नानारूप में नहीं रहेगी, तो भव्यत्व भाव घटित नहीं होगां भो ज्ञानी! कभी पाप की कीचड़ गली में होती है, तो कभी पुण्य की धूल उड़ा करती है; लेकिन यह सबकुछ होता है, घबराना नहीं जहाँ धूल उड़ रही थी, उसी गली में आज कीचड़ फैली है, परंतु चिंता नहीं करो, कुछ दिन ज्ञाता-दृष्टा बन जाओ; आपको वहीं धूल भी उड़ती मिलेगी मनीषियो! जो आज धूल पर विराजे हैं, वो कभी फूल पर विराजे थे और जो फूल में विराजे होते हैं, वे धूल में विराज जाते हैं पुण्य-पाप की परिणति से ही सबकुछ होता हैं। अहो ज्ञानियो! वही पुष्प कोई पुनः लेकर आता हैं माला बनाई, गले में पड़ी और पुनः धूल में मिल गयीं श्रद्धा का तीर्थ तेरे पास है तो तीर्थ दिखेगा, अन्यथा तीर्थों में ढूँढने पर भी भगवान् नहीं दिखेंगें अतः, यह श्रद्धा बनाकर चलो कि जो मेरे साथ घटित हो रहा है, वह कोई अनहोनी नहीं है और जो सम्बंधियों/ पड़ोसियों के साथ घटित हो रहा है, वह भी कोई अनहोनी नहीं है यह तो सबकुछ होता था, होता रहेगा और होता हैं अनहोनी घटना उस दिन तेरे साथ घटेगी, जिस दिन तू कर्मों से मुक्त हो जायेगां हे भगवन्! वह दिन कब आए जब मैं होनी से बचकर अनहोनी में चला जाऊँ भो ज्ञानी !कोई अमल कहता है, कोई अनुपम कहता है, कोई निर्मल कहता है, कोई कृत-कृत्य कहता है, कोई परमेश्वर कहता है, तो कोई परम ब्रह्म कहता हैं मैं सब उपमाओं से रहित, चिद्रूप हूँ ये मेरी जीवत्व-सत्ता हैं लोगों ने पुद्गलों को देख-देखकर अपने परिणामों को बिगाड़ रखा हैं पर जीवत्व-सत्ता का भान आज तक नहीं कियां यही जिनेंद्र-देशना है, यही धर्म है, यही वस्तु का स्वभाव हैं परन्तु कोई रंग को देख रहा है, कोई ढंग को देख रहा है और कोई Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy