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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 279 of 583 ISBN # 81-7628-131- 3 v -2010:002 "जिनमत-रहस्यज्ञाता हिंसा में प्रवृत्त नहीं होता" दृष्टवा परं पुरस्तादशनाय क्षामकुक्षिमायान्तम् निजमांसदानरभसादालभनीयो न चात्माऽपि 89 अन्वयार्थ : च = और अशनाय = भोजन के लिए पुरस्तात् आयान्तम् = सन्मुख से आये हुए अपरं = अन्य क्षामकुक्षिम् = दुर्बल उदरवाले अर्थात् भूखे पुरुष कों दृष्ट्वा = देखकरं निजमांसदानरभसात् = अपने शरीर का माँस देने की उत्सुकता से आत्माऽपि = अपने को भी न आलभनीयः = नहीं घातना चाहिएं को नाम विशति मोहं नयभंगविशारदानुपास्य गुरून् विदितजिनमतरहस्यः श्रयन्नहिंसां विशुद्धमतिः 90 अन्वयार्थ : नयभंग विशारदान् = नयभंगों के जानने में प्रवीणं गुरून् उपास्य = गुरुओं की उपासना करके विदितजिनमतरहस्यः = जिनमत के रहस्यों को जाननेवालां को नाम = ऐसा कौन-सां विशुद्धमतिः = निर्मल बुद्धिधारी है जो अहिंसां श्रयन् = अहिंसा का आश्रय लेकरं मोहं विशति = मूढ़ता को प्राप्त होगां मनीषियो! भगवान् वर्द्धमान स्वामी की पावन पीयूष देशना हम सभी सुन रहे हैं आचार्य भगवान् अमृतचंद्र स्वामी ने आपको सहज सूत्र प्रदान किया कि भगवान् तीर्थेश की वाणी तभी समझ में आती है, जब स्वयं का तीर्थ पवित्र होता हैं जब तक तुम्हारा रत्नत्रय-तीर्थ नहीं जागता है, तब तक तीर्थ पर शीश भी नहीं झुकता हैं जिसको श्रद्धा का तीर्थ उद्भव होता है, उसका शीश तीर्थ भूमि को स्वयमेव झुक जाता है अन्यथा तीर्थेश के पधारने पर भी वो तीर्थकर नहीं मान पातां भगवान् आदिनाथ के तीर्थ में कोई दूसरा नहीं, उनका ही नाती था, जिनकी आँखों में भगवान् नहीं झलकें वर्द्धमान स्वामी के तीर्थ में भी छह व्यक्ति थे, जिन्होंने अपने-आपको तीर्थंकर घोषित किया था लेकिन ध्यान रखना, तीर्थ कभी अपने आप को तीर्थ नहीं कहतां "बड़े बड़ाई न करें, बड़े नबोलें बोल, हीरा मुख से न कहे, लाख टका मेरा मोलं" Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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