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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 231 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 सम्यकचारित्रं ज्यादा बड़ी बीमारी हो तो सबसे बड़े विशेषज्ञ डाक्टर (आचार्य महाराज) के पास भेज देंगे, वहाँ पूरी शल्यक्रिया हो जायेगी यदि फोड़ा भी होगा तो ठीक हो जायेगा। भो ज्ञानी! अमृतचंद्र स्वामी कह रहे हैं कि मोह की दशा में बैठकर तुम अभक्ष्य का सेवन कर रहे हों जुकाम हो गया, मुख में बलगम आ गई और मंदिर में खड़ा है, उसे निगल गयां बाहर निकाल देता तो क्या था? आचार्य भगवान् समन्तभद्र स्वामी ने लिखा-"अनुपसेव्यो", अभक्ष्य हैं चिंतन तो कर लिया करों माँस का सेवन नहीं करते हो, लेकिन ध्यान रखना कि दो-इन्द्रिय जीव से माँस-संज्ञा प्रारम्भ हो जाती हैं घी का डिब्बा रखा था, उसमें चींटी गिर गयी, अब बताओ उस घी का तुम क्या करते हो, जिसमें पूरा शव पड़ा है? शव को तुमने निकालकर फेंक दिया और घी खा लिया, ऐसे त्यागी हैं मुनिचर्या की बात तो बाद में करना, लेकिन श्रावक की चर्या तो बताओं मनशुद्धि, वचनशुद्धि, कायशुद्धि बोलकर आठ दिन की रखी मलाई से घी निकालकर उससे रोटी चुपड़कर कह रहा है-महाराज! अन्न, जल शुद्ध हैं भो ज्ञानी! सूखा खिला देना, सूखा खा लेना, पर जिनवाणी कहती है कि दूध आया तो वह अड़तालीस मिनिट में तपना चाहिये चौबीस घंटे के अन्दर आपने मक्खन निकाला, अड़तालीस मिनिट के अन्दर आपने उसका घी निकाल दिया, तब तो ग्रहण करने योग्य है अन्यथा जिस जाति के जीव का दूध था उसी जाति के पंचेंद्रिय जीव उसमें उत्पन्न हो रहे हैं, शव का पिण्ड (कलेवर) तुमने तपाकर रख दियां अहो! विभुक्त-शक्ति की बात कर रहे हैं आप, जिनको आपने तपाया, वह भी विभुत्व-शक्ति से युक्त थे अभक्ष्य नहीं छोड़ पाए तो तुम्हारी आत्मा सम्यकदृष्टि कैसे है? बाजार के घी-दूध के बारे में आप ही सोच लेनां मुझे मालूम है कि किसान रोज-रोज नहीं तपाते, पंद्रह-पंद्रह दिन का मक्खन रखकर तपाते हैं, फिर घी निकालते हैं अब सोचो जिसका अभक्ष्य, अनीति, अनाचार का त्याग नहीं है, वह भगवती-आत्मा को कैसे प्राप्त कर सकता है? अरे! यह मत कह देना कि यह क्रियाकाण्ड बाहर का है, वह अन्दर की बात हैं बिना संयम के बात बनेगी कैसे? करुणा नहीं, दया नहीं, तो आगम में लिखा है कि निर्दयी को भगवान बनने का अधिकार नहीं हैं बच्चों को बुखार आ गया तो मधु में डालकर औषधि चटा दी, बच्चा ही तो हैं ध्यान रखना, शहद की एक बूंद का सेवन करने में सात गाँव जलाने के बराबर हिंसा होती है, पाप होता हैं शहद कैसे बनती है, सब जानते हों चार-इन्द्रिय जीव (मक्खियों) को बहेलिया अग्नि लगा देता है या फिर पानी डाल देता है, छत्ते के छत्ते टपक-टपककर नीचे गिरते हैं उनसे टपक रही है मध, जिसका सेवन आप अमृत कहकर कर रहे हों ध्यान रखो, तुम्हारे घर को जलाकर कोई तुम्हारे धन को उड़ा ले जाये, तब बताओ कैसा लगेगा? कितनी मेहनत से मक्खियों ने पुष्पों से पराग लेलेकर एकत्रित किया और आपने सबकुछ छीन लियां इससे लगता है कि मनुष्य Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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