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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 227 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 अभी उनको कोल्हू में पेल देता हूँ अंत में ज्येष्ठ पुत्र आया, जिसे पिता कहता था तो कि मेरा मात्र एक बेटा हैं माँ! भूख लगी है, भोजन चाहियें माँ बोली-आपके पिताजी ने मेरे साथ अच्छा नहीं किया, बहुत पीटा हैं मेरे प्राण ही लेनेवाले थे, वह तो मैं बच गई बेटा कहता है-माँ! आपको मालूम है कि पिताजी मेहनत करके आते हैं और आप भी अपनी आदत को नहीं सुधार पाती हो, उसी समय बहुत बातें करती हों माँ? हमारे पिताजी इतने अज्ञानी नहीं हैं आपने भी जरूर कुछ कहा होगा, अन्तर इतना है कि उनके हाथ चल गये और आपका मुख चला होगां आप कोई विकल्प नहीं करो, स्वस्थ्य हो जाओ, भोजन में बनाये लेता हूँ और सबको मैं ही भोजन करा दूंगां यह सुनकर पिता सामने आकर बोले-क्यों, देख लिया? भो ज्ञानी! सब क्यों हुआ, वह तो सुन लो बात ऐसी थी कि जब ज्येष्ठ पुत्र गर्भ में आया था, तो उनकी सासु जीवित थी और सासु के अनुसार अनुशासन में रही बहू को गली-गलियारे में घूमने को नहीं मिलां गर्भावस्था में जिनवाणी सुनती थी, णमोकार की मालायें फेरती थीं, बेटे के अंदर सुसंस्कार पड़ें जब लघु पुत्र गर्भ में आया, उस समय सासु-माँ चल बसी थीं, तो बढ़ई के यहाँ गर्भ की अवस्था में मुगरिया आदि बनवाने जाती थी, तो उस बेटे पर वसूले के संस्कार काम कर गयें जब द्वितीय पुत्र गर्भ में आया तो उस समय माँ चप्पलें आदि सुधरवाने जाती थीं तीसरा बेटा गर्भ में था तब तेली के यहाँ तेल पिराने, खरीदने आदि के लिये जाती थी, सो कोल्हू के संस्कार संतान के ऊपर थें। भो ज्ञानी! ध्यान रखना, संस्कार भी बहुत बड़ी विद्या होती हैं यदि आपके अंतरंग में संस्कृति को जीवन्त रखने की परिणति है, तो संस्कारों को जीवन्त रखना पड़ेगां संस्कार जीवन्त नहीं रहेंगे, तो अहिंसा की संस्कृति जीवन्त रहने वाली नहीं हैं प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह अपने परिवार के संस्कार को निर्मल रखें, जिससे हमारी संस्कृति निर्मल चलें अतः अभद्र भाषा का उपयोग होना ही नहीं चाहियें इससे पता चलता है कि संस्कार गर्भ से शुरू होंगें अतः पहली पाठशाला घर है, पहला अध्यापक माँ है, दूसरा अध्यापक पिता है; फिर बाद में दादा-दादी को देखनां परिवार के संस्कार ही व्यक्ति को महान बनाते हैं एक पत्थर को आप संस्कारों के द्वारा परमेश्वर बना लेते हो, तो यह तुम्हारी चेतन प्रतिमाएँ-बच्चों को तुम शैतान क्यों बना रहे हो? संस्कार डाल दो, इनको भी तुम परमेश्वर बना दोगें याद है आपको, सत्यता वाणी की नहीं, सत्यता चर्या की होती हैं सत्यवादी हरिश्चंद्र सबकुछ देकर जब अपने बेटे राहुल को लेकर किसी देहात से गुजर रहे थे, बेटा कहता है-पिताजी! अब तो कंठ सूख चुकां उसी समय एक किसान अपने खेत से मटके में गन्ने का रस लिये आ रहा था उससे रस लेकर बेटा राहुल के मुख की ओर ले जाते हैं तो एक तोता कहता है-जिसने अपने राज्य को दे दिया वह आज कैसे अपने बेटे को एक घुट रस पिलायगा? भो सत्यवादी! आज तुम दान देने के बाद भी एक घुट रस पिलाकर कितना बड़ा पाप का संचय कर रहे हों अहो बेटा! तेरे प्राण देखू कि अपना प्रण? लाल कहता है-पिताजी! मेरे प्राणों के पीछे और अपना प्रण मत छोड़ों Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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