SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 226
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 226 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 करो और किसी जीव के माँस को मत खाओ' अब समझना कि जो द्रव्य चमड़े पर रखा हो, जो द्रव्य जैविक-द्रव्यों से पैक किया गया हो, उस द्रव्य का आप कैसे सेवन कर सकते हो? मनीषियो! धर्म व्यापारियों का नहीं है, धर्म कंपनियों का नहीं है, धर्म आपका हैं अहो! एक गज गमन करता है, तो देख लेता है कि जमीन कैसी है; परन्तु धिक्कार हो आपको कि आप बिना-देखे मुख में कुछ भी रखने को तैयार हो जाते हो, पूछते भी नहीं कि इसमें क्या है? जिस भोजनालय में दो प्रकार का भोजन बन रहा हो, वहाँ जाकर तुम बड़े चाव से भोजन कर रहे हों भो ज्ञानी! ध्यान से सुननां कोई सज्जन कहें कि आपकी भोजन-व्यवस्था हमने शुद्ध की है और आप कहें कि चलता है, तो उसकी श्रद्धा व संस्कृति पर आपने कुठाराघात किया हैं अहो! जिनवाणी में स्पष्ट लिखा है कि जिस क्षेत्र में धर्म की हानि होती है, भोजनशुद्धि न हो, उस क्षेत्र में साधु विहार न करें एक धर्मात्मा देशव्रती विदेश की यात्रा नहीं कर सकता, क्योंकि उसका दिगव्रत हैं जब विमान उड़ान भरता है, तो कितनी आवाज होती है, कितने पंचेन्द्रिय पक्षियों का विघात होता होगा और कितने वायुकायिक जीवों का घात होता होगां अरे! जिसके प्रचार के लिये धर्म नष्ट हो जाये, वह धर्म का प्रचार नहीं इसीलिये तीर्थंकर महावीर ने अपने किसी भी शिष्य से यह नहीं कहा कि तुम विदेश जाओं भो ज्ञानी! 'मुलाचार' में एक स्वतंत्र अधिकार का नाम पिंड-शद्धि अधिकार है यदि भोजन की शुद्धि नहीं है, तो भावों की शुद्धि नहीं है और जिसके भावों की शुद्धि नहीं, उसकी संयम की शुद्धि कैसी होगी? परिणामों की शुद्धि के लिये भोजन की शुद्धि अनिवार्य हैं यह ध्यान रखना "जैसा खावे अन्न, वैसा होवे मन" और "जैसा पीओ पानी, वैसी बोले वाणी" जहाँ पानी ही शुद्ध न हो वहाँ के प्राणी शुद्ध कैसे होंगे? आपके घरों में हैंडपंप लगे है और बगल में सन्डास बना हैं अब बताओ पानी की शुद्धि कैसे हो? आप सोचो कि भोजन किया एक कमरे में और विसर्जन किया दूसरे कमरे में वह कमरा ही तो है, घर की शुद्धि कहाँ है? इसीलिये, मनीषियो! ध्यान रखना, अशुचिमय स्थान पर भोजन मत करना भो ज्ञानियो! मुझे आप पर करुणा आ रही है, क्योंकि आगम में स्पष्ट है कि जो ज्ञानावरणी तंतु होते हैं, ज्ञान के क्षयोपशम (बुद्धि) पर इनका साक्षात् प्रभाव पड़ता हैं एक पिता अपने बेटों से कहता था कि मेरा बेटा तो एक ही है, परन्तु बेटे थे चारं एक दिन पत्नी झुंझला पड़ी, बोली-मैं तीन कहाँ से लेकर आई हूँ? वह बोला-परीक्षा कर लो, पर बेटा तो एक ही हैं पहले छोटा बेटा आया और कहता है-माँ भूख लगी है, भोजन दों माँ कहती है आपके पिता ने मुझे पीटा है, उसी से भोजन लेलो, मैंने आज भोजन नहीं बनायां बेटा बोला-कहाँ गया मेरा बाप? मैं अभी उसको देखता हूँ, वसूले से छील देता हूँ दूसरा बेटा आया, माँ! भोजन चाहियें माँ ने वही उत्तर दियां वह भी कहता है-कहाँ गये पिताजी ? अभी मिल जाते तो मैं चप्पलों से खबर ले लेता, यह सुन माँ का हृदय विदीर्ण हो गयां तीसरे पुत्र से भी माँ बोली-बेटा! आज भोजन नहीं बना, आपके पिताजी ने मुझे पीटा है, अतः मेरे शरीर में भोजन बनाने की शक्ति भी नहीं थीं कहाँ हैं पिताजी ? मैं Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy